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बात विस्तार वा का जमक पाकरीक धुं हरी ॥ श्री मुखे श्री महाराज ॥ २४ ॥ कयु पूर्वभुनें छपरतुं पनगारियें करीषित ॥ जयारथज मदंड नि में कहिले ते हरित ॥९५॥दरिन दये धरी ॥ के जे करी विस्तार ॥ जे | शिसऊपापथि ॥ डरी चालेनर में ना स्व ॥ १६ ॥ राम श्री मुखै थि में सांभ
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