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ग्र. कोटिजीवनां कल्यांणकरे ॥ कुश्म १३४ चरणामांमांन्युं चित्त ॥ विनेर हि
| नहिजे निषित ॥ ४१ ॥ शाम फरव मारिया समाई ॥ तेणें मगनघएं मनमांइ ॥ अनुभवेामलमों बो ले ॥ जांणे पंडब्रह्मा उचा तो जे ॥ ४२ ॥ कख संसारि जेजे के बा ये ॥ तेनें सपने वरण नवाये ॥ नर निरजर
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