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य. सर्वेरित्येतमा रिशर्ण रहदरी खनादर्ण ॥ २४ ॥ श्रवरो चंगुं तमा रिकथा ॥ बिनुं न बोखुं सुख चित्र था ॥ नयी निरखुं तमारुंरुप ॥ त्वचा येंत मनें ने हुं भुप ॥ २५॥ करें करुं तमा रिशेव ॥ हुदे समरुंष्त्री दरीदेव || रसनायें राखुं त मारुं नांम ॥ वास
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