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रव जीयां ॥ न हि सरख नोखवले ना ॥ १० मासन व कधीजी व नें ॥ देरां सा गति मेरा ॥ ५० ॥ नेक कपीस जी यें मातनें गर्भवास नुं दुखरं दद् ॥ ते संभजा इनें ॥ राम कहे नि कुलानंद ॥ क 3 २|| पूर्व लांयी । जे रिस्यें या जीववि तेले बस मिवान गहन गतिगर्भवास नितेकडुं करी विस्तार ॥
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