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देखि जिवावेत काल रे ॥ कापि नापि कलेवर रखा खेरे ॥ बजगांचंगे अजगांन थाये रे ॥ ३८ ॥ काढिले येरानुंकले जुरे ॥ पल्ले मारे तिरक रीपेजुरे ॥ दिये दुःखद्यान हिंद
जिरे । पामे दुःख कस्व नहिं परे ॥
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३॥ तनें तपैले तापविषमरे ॥ जे कालना सूरज समरे ॥ जीव
रक्ष
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