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य. लिपरस्परपंचभूतनेंन विवर बुद्धिवबुधारिनें ॥ आत्माच्मात्मा एक हो।। तारें ना रखे ले के म केनें मारीने ॥ ९६॥ अरी मित्र तो सत्य छेजारेंश माती ले एक ॥। एतो वाशिनोविना सो। करूं दवे ते नो विवेक ॥ ९७ ॥ जेम नरप्राकाशमतिचोकरे परवेश ते नेंच्या कारवनिता नजरेना।
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