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लगाडिदियो । फांती भी मां दाय जी ॥ जो जो रेंजे पात्रा व्यहोते ॥ स रवाने रदारनीजी ॥४३॥गा मगरा | सघर हवेली ॥ पयांस्त्रां पवाडे जी ॥ मानखजीना खावाजा एयुं ॥। नो तुं को ये दाडे जी ॥ ४४ ॥ बाखिजाति टालिकाया || सौ को ये शमांधेस जी ॥ उतारिनें मे व्योमनथिको ये न
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