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००६०
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स्वादिगण
००३४
००३४ तुदादिगण ०१५७ ०१४३ रुधादिगण ००२५
००२५ तनादिगण ००१०
०००९ क्रयादिगण ००६१ चुरादिगण ०४१०
०३९५ कुल संख्या १९४३ १९५८ ___ यदि उपर्युक्त सारणी को देखें तो धातुओं एवं उनकी संख्या को लेकर व्याप्त अनिश्चितता को सरलता से महसूस किया जा सकता है। पं० हरेकान्त मिश्र एवं रामकिशोर शर्मा ने स्व-संपादित धातुरूपावली में सिद्धान्त-कौमदी के अनसार ही धात पाठ को स्वीकार किया है। ऐसे में धातुओं का चयन एवं उनकी व्याख्या करना दुरुह हो जाता है। अतः व्यावहारिकता को स्वीकार करते हुए विशिष्ट संस्कृत अध्ययन केन्द्र में बने संस्कृत के Corpus एवं संस्कृत के कुछ लौकिक ग्रन्थों को आधार बना कर ४३८ धातुओं का चयन किया गया है। अतः इनकी व्यावहारिकता को लेकर मतभेद से इनकार नहीं किया जा सकता है। इस कार्य का जावा आधारित वेब डाटाबेस विशिष्ट संस्कृत अध्ययन केन्द्र के संगणकीय संस्कृत की वेबसाइट पर उपलब्ध है जिससे किसी भी धातु की रूपावली बनाई जा सकती है। चूंकि इंटरनेट की सुविधा अभी सब जगह नहीं है इसलिये इसे पुस्तक के रूप में छापने का निर्णय लेना पड़ा।
इस कार्य हेतु जे. एन. यू. के प्रो. कपिल कपूर और प्रो. गुरुवचन सिंह जी का उत्साह-वर्धन और आशीर्वाद बहुत फलदायी सिद्ध हुआ। जे. एन. यू. के ही विशिष्ट संस्कृत अध्ययन केन्द्र के अध्यापक-गण प्रो. शशिप्रभा कुमार, डॉ. हरिराम मिश्र, डॉ रामनाथ झा, डॉ. रजनीश मिश्र, डॉ. संतोष शुक्ल, डॉ. सी. यू. राव का उत्साह-वर्धन सराहनीय है।
इस धातुरूपावली का विश्लेषणात्मक तथा सर्जनात्मकवेब सॉफ्टवेयर
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