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O-63-61
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फलोदितम् ॥ २३॥ अथ चन्द्रावस्थितिराशिविशेषेण भद्रावस्थितिमाह ॥ वृषभमिथुनमेषे वृश्चिके २० । स्वर्गलोकम् ॥ जलचरघटसिंहे कर्कटे भूतलेषु ॥ युवतिमृगतुलायां काम्म के नागलोकं भ्रमति जगदिदं सा कार्यनाशाय विष्टिः ॥२२॥ कोजागरोत्सवे चैव होलिकोत्सवकर्मणि ॥ भद्रा विव
जनोया स्यान्मिथिलायां विशेषतः ॥ २५॥ अथ नक्षत्रस्वामिविचारः॥ अश्वो यमो नलो ब्रह्मा से NO द्विजराजस्त्रिलोचनः॥ देवमाता गुरुः सर्पः पितरो भगएव च ॥ २६ ॥ अर्यमा द्य मणिस्त्वष्टा
मारुतो वासवानलौ ॥ मित्रो महेन्द्रो नि तिर्जलं विश्वे विधिस्तथा ॥ २७ ॥ गोविन्दो वसुतोयेशस्त्वजपाच्च यथाक्रमम् ॥ अहिनश्च पूषा च ऋक्षेशास्ते प्रकीर्तिताः ॥ २८॥ अथ नक्षत्राणाविंशेषसंज्ञामाह ॥ चरं चलं स्मृत खातीपुनर्वसुश्रुतित्रयम् ॥ ऋरमुगू मघा पूर्वात्रितयं भरणी तथा ॥ २९॥ ध्रुवं स्थिरं विनिर्दिष्टं रोहिणी चोत्तरात्रयम् ॥ तीक्ष्णं दारुणमाश्लेषाज्येष्ठााम-21॥४॥
3-09-DIEOHDDESI-ENESH
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