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(ए) दूर देश सुं नरनारी नृप, दर्शन करणे आवे केशर चंदन अतर लगावे मृगमद धूप खेवावे ॥माणक मोती कनकरजतका नर २ थाल चटावेजी ॥ जेशाणे॥ ३ ॥ निर्धनकुं अतीदेत लक्ष्मी पलमें करे निहार, वांऊ नारकुं दे सुत चंचल रोगी कियो विमार, शिवचंद कहे कुमति ओर विपदा देवामा सुत टारजी ॥ जेशाणे ॥ ४ इति पदं संपूर्णम् ॥
॥ शुनं नूयात् ॥
Ena
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