________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ४४ )
।
1
॥
रुपैया लागा, शोजाक हियनजाय ॥ माराप्रभुजी शोना० । शुभ दिन देखवृक्षओरडुजो, दीनोकलशचढाय | माराप्रभुजी दीनो० | शुभ दिनदेखकलशच ढ्यो तो बहु । पूजा उत्सवकीन, करिप्रतिष्ठासरूपचंदजी । पंक्तिचतुर प्रवीण | सखिसव मंगलगा• योजी ॥ लुव० ॥ १ ॥ लवपुरमें कल्पवृक्षको । देख्यो अजब हेमोल || मारा० देख्यो० || पत्तों की हरियाली गेहरी ॥ फल धौरपुष्पामोल || मारा० ॥ फल० || ओर वृक्ष पर तोता कोयल । पंछी करत कि लोल || मारा० पंची करत किलोल वृक्षपर | दाखनरंजी खाय । कियोजापतो खूबचतुर्दिशदी जाली खीचवाय, शीशपरवत्रचढायोजी। लूडव |२| लूद्रवपूरमे कल्पवृक्ष की देखी जववहार | माराप्रभुजी • देखी• ॥ प्रजुपारशकादर्शन करके पायो हर्ष अपार ॥ मारा० पायो० ॥ संवतउन्नी से चुंबालीस । तिथिद्वादशी रविवार || मारा० तिथि० ॥ द्वितीय चैत्रके मध्यदिवस तुई । पूजासत्तरप्रकार । ऊाजताल मृदंग बजे । ओर गावे सबनरनार । छंद शिवचंद्रवणायोजी ॥ लुव० ॥ ३ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
0
॥ इति श्रीवृद्धि रत्नमाला संपूर्णम् ॥
For Private and Personal Use Only