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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७ ) मालवदेशे जाए || श्रीजिन० ||२|| जवि० पूनमचंद दीपचंदजी सौजागमल ने चांद ॥ श्री जिन० ॥ जवि० चांदमल राय केशरी सुतपुरणकलाप्रवीण ॥ श्री जिन० ॥३॥ जवि० चांदमल जाय जणुं यदकुंवर ने फूल ॥ श्री जिन० ॥ भवि० आणंद जावउलटियो अब जेहूं श्री गिरि राय || श्री जिन० ॥ ४ ॥ जवि० केशरीमल मांगोतने तब मेल्यो अहमदाबाद | श्रीजिन० ॥ वि०क्रपामुनिमहाराजने विनती करवाने काज ॥ श्री जिन० ॥ ५ ॥ जवि० आणंद लिनी श्राखमी मेरे दूध धीरतका त्याग श्री जिन० ॥ जवि० गुरु उपयोगी गुणेभरथा जब देख्यो लाज अपार ॥ श्रीजिन० • ॥ ६ ॥ जवि० सिद्ध क्षेत्र नेटण जणी तब विहार कियो ततकाल ॥ श्रीजिन० ॥ जवि० ग्राम नगरपुर विचरतां साधे समुदाय सवयोग ॥ श्री जिन० || ७ || जवि० संवेगी मुनिवर जला गुरु करे धर्म व्योपार || श्री जिन• ॥ जवि० जीवदया पाले सदा फिर संयम सत्तर प्रकार ॥ श्री जिन • ॥ ८ ॥ जवि० बारे नेदे तप तपे देखो एसे पगार ॥ श्री जिन० ॥ जवि० पालीताणे पधारिया जब नेट्या श्री गिरिराय || श्री जिन० ॥ ६ ॥ जवि० For Private and Personal Use Only
SR No.020916
Book TitleVruddhi Ratnamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVruddhiratnamuni
PublisherKeshrisinhji Saheb
Publication Year1915
Total Pages52
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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