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यो, एहवे समय सकेंद्रेदेवता आगली प्रशंसा की धी जे नरतक्षेत्र मांहि सम्यक्तधारी राजाणिक बे तेहने देवता पिण चालवी नसके, एहवो वचन सांभली प्रणसरदहता देवताये शावी साधु नो रूपकरी खांधे जालधरी राजा श्रेणिक आगली थई निकल्यो राजायें साधु जाणी वांद्या राजा कहे किहां पधारो छो, हंराजा! माक्लीनो मांस लेवा जावांछां, राजा कहे आपणे घरे सर्व मिल सी, रे महाराजा! ताहरे दीधे केतलो एक परो पडस्य, दात्री यती थया के तेहने मांस विना न सरे आज अवेलानीकल्या ताहरी निजर चढ्या वलतो राजा कहे एहवो बचन मा बोलो, तमे तुम्हारी बात करो, निःकलंकी सकलंकी नही, ए तुम्हारा कर्मनो दोष राजानोमन लिगार चूको न जाणी वली साधवी नो रूप पूरे मासे हाट हाट सुवावडी नो साज मांगती देखी, सुभट कहे हेराजन् ! पूर्व साधु वांदी पवित्र थया, हिवे सा धवी वांदो राजा ये साधवी बांदी कह्यो पापणे घरे पधारो गर्भनो निर्वाह करीस, तिवारे साधवी बोली केतलीनो निर्वाह करस्यो चंदन वालादिके स्यं कंदर्पजीत्योके तेमाटे माहरो स्यूं राजा कहे एक खल सर्वने सरीखाकरे पणि सुवर्ण श्यामतानथी राजा लिगार धर्म थकी न चूको निंदा पणि न कीधी देवता खुशी थई प्रत्यद रूप करी प्रशंसा