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उपचारवरैर्वयजिनेंद्रान् रुचिरैरद्यमुदायजामहे ॥ झीपरमपरमात्मभ्यो जिनेंद्रभ्यां जलं चंदन पुष्पं धूप दीप नैवेद्य कृतं यजामहे स्वाहा ॥ इति तीस चोवीसी पूजा समाप्ता ॥
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कलस ॥ हरीगीतबंद ॥ तजीविनावश्राणी स्वनाव सुक्लध्यानेधाइये निर्मलचिते सुकृतविते तीसचौबी सीगुणगाइये ॥ १ ॥ श्री जिनसेवाञ्य्मृतमेवायनोप मजगजाणीये दुरितजा येशिव सुखधाये कल्पवृक्ष नुमानीये ॥ २ ॥ तजीकुसंगजजीसुसंग तारकवार कपरखीये जिमजवेरीही राकेरी परिक्कायेधनग्रा पीयें ॥ ३ ॥ दुखवारणमा कारण परिक्षा विकि मधाइये कुवकुगुरुसुदेवसुगुरु सोलनापरिक्षाजा णीये ॥ ४ ॥ कुदवन जताजत्र में जमता नतदुख उपाइये श्रीजिननजतापापहरता अयशिवपद पाइये ॥ ५ ॥ नम्यो प्रदेसीगणधर केसी बारीनरक सुरगेगयो करीनाटक जिनके ग्रागल सूरी पानसुरग हरायो ॥ ६ ॥ आनत्रपरनबवलीजवोजय सरणं जिनचितधरीये कहेजिनदासरे उदास दुष्टकर्मनि बारोये ॥ ७ ॥ धर्मगुरुमुक सेठजीमसी तासगुणन विसारीये याकीसंगेधर्मपायो संगतफलइमजा णीये ॥ ८ ॥ श्रीजङ्ग पूरे कर्मचूरे वीरसुविधिवदीये जिनालयदीये अनोपम सेठजीमहीकृतमानीये ॥ ९ ॥ नगणी ससे एकत्रीसवरषे संवत्सरीदिनेकयो करीप जोसगनरसिंगपुरे जिनदासचितगहगयी ॥ १०॥