________________
-
-
थी कालिकाचार्यजीयें तो कोईएक राजाने पंचमी ये इंद्रमहोत्सव हतो तेमांटे चौथनेदाने संवत्सरी करबानी आज्ञा दीधी हथी पोतेतो पंचमीयेंकरी जेमांटे कालिकाचार्यने पंचमीमां इंद्रमहोत्सवनो कांई प्रतिबंध नहतो ग्रंथोमां पण एम लख्योडे जे अंतरावियसे कप्पइ । एनीटीका । पंचम्या अंतरापिच अर्वागपिच एकदिनपूर्व चतुर्थ्यामित्य र्थः शत्रांतरापिचेत्यनेन पंचम्यां कर्तुमशक्नुवानए वांतरा कुर्यादितिज्ञाप्यते नतुपक्षांतरमेतत् पर्युष णायाः सांवत्सरिकत्वेन पंचाशत्तमे दिने चतुर्थ्यां संवत्सरापूतः । एनो अर्थ। पंचमीथी पूर्व पणि सं वत्सरीपर्व करवो जे सूत्रमा अपिशब्द कह्योछेते थी एम जणावे जे पंचमीये कारण वशथी करी नसके तेज चौथने दामे करे पंचमीमां तथा चौथ मां करवो एहवो पदांतर नथी जमाटे ए पजो सणपर्ब संवत् परोथाय तेदा करवो जोइये चौ थमा संवत्सर पूरो थातो नथी वर्तमानकाले शमा रानाइयोने वली साधुलोगोने तेहवो कोई इंद्रम होत्सव सरीखो प्रतिबंध दीखतो नथी जे चौथ मांजकरिये तमाटे मारी धारणामां एम आवेळेजे कालिकाचार्यजीयें एहवी सदा चौथमांज करवानी आज्ञादीधी नहती राजायें प्रतिघंधथी चौथमाक री राजाना आग्रहथी वली खुशामतथी अनेकलो गचौथमाज करवालाग्या हजीतक तेज आग्रह ध