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कैसे होगा, विचित्र विचित्र सुखदुख होनेमे का रण जीवकृत कर्महीहै। जीव कर्मका फलनोगता है ४ सुखदुखका अनुन्नव जीवको होताहै' इस्से अपने किये नलेबुरे कर्मकेफलका नोगनेवालाहै॥ जीवका निर्वाणहै ५ निर्वाण अर्थात् राग द्वेष मद, मोह, जन्मः जरामरण और रोगादिदुःखों का क्षयरूप अवस्था विशेष मोक्षऔरनिर्वाणकहा वताहै सो जीवको होताहै ॥ जीवके निर्वाणका उपायहै ६ सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र तीनो मिलके निर्वाणके उपायहैं, यह कसम्यक्तके स्थान अर्थात् इनके रहतेही सम्यक्त होताहै, यहसम्यक्तके सडसठ भेद हुए, जोनव्यपुरुषवस्तुमाप्रकीसिछिमेपरस्पर थपेद्दासहित काल, स्वन्नाव, नियति, पूर्वकृत अर पुरुषकार इनपांचोको कारणरूपसे प्रमाण करताहै वहीपुरुष सम्यक्तरूप रत्न पावताहै ॥ प्रवचनसारोछाराद्यनुसारेणैववर्णितोमयका । सम्यक्तस्यविचारोनिजपरिचेतःप्रसत्तिकृत॥१॥ यह प्रवचनसारोछारादि ग्रंथोकेअनुसार सम्य क्तनिर्णय हमनेलिखा सजनोके चित्त प्रसन्नताके लिये ॥
काश्यां श्रीगणिरामचन्द्रचरणाम्भोजन्मभङ्गा यितो भिक्षुर्नानकचन्द्र आर्य उदयत्सूराणग च्छाश्रितः । शाके वैक्रमबाणवन्हिनवभू प्र • ख्ये सितेकार्तिके षष्ठयांतत्वविवेक माविलम