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आकार अर्थात् इनसे धर्मकाममे न्यूनता होयतो नी धर्महानी नही होती है ॥ मूल १ यह सम्य क्त पंचाणुव्रतः त्रिगुणव्रत चतुःशिदाव्रत, पंच महाव्रत और चारित्र धर्मका कारणहै
से मल कहावताहै जैसा वृदा मूलहीन वायुसे गिरपडता है, वैसेही सम्यक्त विना जैनधर्मवृक्ष परमतवायु से गिरपडेगा इसलिये यह धर्मका मूलहै ॥द्वार २ यह सम्यक्त धर्मकाद्वारहै, जैसा द्वार रहित नगर चारोतरफ कोठसे घेराहोयतो कोई भीतर बाहर प्रायजाय सकतेनही वैसेही सम्यक्तरूप द्वारबिना जैनधर्ममे प्रवेशनही होता इसलिये यहद्वार कहा वताहै ॥ प्रतिष्ठान ३ जैसा ने विना मकानद्रढ अर स्थिरनही होता वैसाही यहधर्मरूप गृहका न है इस से प्रतिष्ठान कहा ॥ आधार १ जैसा भूतलबिना निरालंब यहजगत्रहसकतानहीवैसाधर्मरूपजगत् सम्यक्तरूप शाधार बिना स्थिरनही होसकता इ स्से शधार कहा नाजन ५ जैसा पात्रबिना दूध नष्ट होजाताहै वैसे धर्मरूपवस्तु सम्यक्तरूप पात्र बिना नष्ट होजायगा इस्से नाजन कहा। निधी६ जैसेखान मिलनेसे अनेक उत्तमरत्न मिलते हैं, वैसे सम्यक्तरूप खान मिलनेसे चारित्ररूपरत्न मिलते हैं। इससे निधिकहा ॥ शस्तिजीव १ जीवहै सब प्राणियोंमे अपने अपने ज्ञानसें, चैतन्य सिझहै इ स्से, नास्तिक कहताहै, जीव नहीहै, चैतन्यतो पंच