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से भरगया तब राजा पंडितोको साथलेके देखने को गया, पंडितोंने तलावका खब वर्णन किया धनपाल कुछनी नबोला, तब राजाने कहा तुम नी कुछ वर्णन करो, तब धनपाल बोला महारा ज! यह तलाबके रूपसे तुम्हारी दानशालाहै म त्स्य इसमे खाद्य वस्तुहैं, बक चक्रवाक सारस आलि दानपात्रहैं इस्से क्या पुण्यहोगा इस्मे हम नहीं जानते, राजा यह सुनके बऊतही कुपितहो गये, और मनमे यहविचारा यहदुष्टहै इसकी शंख निकलवायलेना, अनंतर वहांसे चलके शहरमेश वते चौमोहानीपर शाये तब एकलझकीका हात पकडे बुढी चली आवतीथी, राजा उस्को देखके पंडितोसेबोले हेपंडितलोग! सुनो "करकंपावे सिर धुने बुढी कहा करेह,, यह सुनके कोई पंमितबोला "हक्कारांतांकभमां नन्लंकार करेह,,तव अवसरपाके चतुर धनपाल बोला राजन् ! यह बुढी जो कहती है मैं कहताहुं सुनिये क्या यह नंदिहै, क्या यह मुरारिहै, क्या कामदेवहै, क्या नलराजाहै। क्याकु बेरहै। किंवा यह विद्याधरहै, क्या इंद्रहै क्या चंद्रहै क्या ब्रह्माहै ? ऐसे लडकीके पूबनेपर मूंडी हिला यके नहीनही यह नोजराजाहै ऐसा कहतीहै यह कहते राजा प्रसन्न होयबोले धनपाल ! मांगोबर हमदेंगे धनपालने बुछिबलसे राजाका अभिप्राय जान कहा महाराज ! जो हमको वरदान देतेंहै तो
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