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नामक अपनेकुलकी देवताका शाराधन करताथा अनंतर चामुंडाका प्रत्नावसुनके उसकीनी आराध ना करनेलगा, इसप्रकार कुछदिन बीतनेपर एक दिन दूसरेगांवमे जातारहा मार्गमे नदीउतरते उस नदीका अकस्मात् पूरआवनेसे डूबताहुआ घबरा यके हेधारादेवी हमारी रक्षाकरो, हेचामुंडादेवी हमको बचाओ ऐसा दोनोका स्मरणकरने लगा, तब वहदोनो देवीशांई पर आपुसके ईर्षासे दोनो मेसे एकनेनी उसको नहीबचाया वह डूबगया, इसलिये अपनेहितकी इच्छावानको कदापिअन्या न्यमत देखनेका भिलाषनही करना ॥ २ ॥ __ जैसा महामंगलभूत गुरुप्रादिकोंको सन्मुख आ वतेदेखके अमंगल यहहुमा अब हमाराकार्य नही होगा इत्यादि मनमे चिंतनकरनेसे सम्यक्तदूषित होताहै अर उस्से दुधर्मबंध होताहै ॥ ३ ॥
जैसा किसी एकसमय राजगृहनगरमे श्रीवर्द्धमा नस्वामी आए, तबश्रेणिकादि श्रधालुलोग उनके वंदनाकेलिये वहां उपस्थितहुए, उससमय सौधर्म कल्पवासी दर्दुरांकनामादेव अपने चारहजार सा मानिकदेवोंके सहित भगवान्के दर्शनकेलिये आय के श्रीभगवान्के आगे बत्तीसप्रकारका नृत्यकरके स्वस्थानको चलागया, तबगौतमने पूछा हेनगवन् ! इसदेवने इतनीसमृद्धि किसपुण्यसे पाई? नगवा न् बोले इसनगरीमे एकमहाधनी नंदमणिकारसेठ
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