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सत्कारपरीसह, मथुरानगरीमा राजानो पुरोहि त जैनधर्मनो द्वेषी पोताना गोख नीचेथी जेसाधु वटाये तेने माथा ऊपर लातमारे महापुरुष कांई बोले नही एकएक साधुने लातमारीते एक श्रावके दीठो तेने रीसचढी तेणे कोई मुनिनेपूबी वाकब थयो जेदाने राजाएना घरे जमवा आव तेदाडे रा जानो हाथपकडी दरवाजा बाहर ऊन्नो राखबी ने कहवो जे राजन् ! दगोबे अंदर जासोनही तेटला मां पुरोहितनं घरपझसे तम योग बनेथी तेमनी पy राजासेठ ऊपर राजीथयो पुरोहितनं पकडी बहीनाखी सेठने प्रधानथाप्यो राजा धर्म पाम्यो पबे पुरोहित सनासमक्ष मुनिना पगधोई पीधा तारे जीवतो मंक्यो सेठेपातानी प्रतिज्ञा परीकीधी पणमनीने कमाकरी तेम करवी ॥ __ प्रज्ञापरीसह, उजेणीनगरीएं कालकाचायें पांच से चेला प्रमादीजाणी मूकीने सौवरणन्नौमे पोता ना मोटाचेला सागरचंद पासेगया तेणे नोलखी आदरदीधो नही गुरु तिहारह्या सागरचंद रोज पबे जेमारी प्रशंसा घणीने के नही तम्हे सांमली के नही? गुरुकहे हां तम्हारी घणीप्रशंसा लोकमां डे पण गुरु घणा गंन्नीर छता पोतानी ओलखाण तथा ज्ञानगुण बतावी छहंकार नकस्यो ।
शज्ञानपरीसह, एकशाचार्य शिष्योने पाठदेतां कलेशपाम्यो तेथी एहवो विचास्यो जेमूरख पणा
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