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री अरज सर्व जैनधर्मपालनाराने एबे जे सुगुरूनी परिक्षा कपडा ऊपरे करिये नई तिमतेनी किरिया वली तपस्या देखी पण गणो रीजिये नई परंतु जे पुरुष निरपक्षी उपदेश दीए सुद्धजिनवचन यथा स्थित नाषे तेने सुगुरुजाणवो जिमकोई अन्नव्य जी व मुनिपणी लेई सुद्धउपदेस देता अनेक जीवनेमो कपोचा ने पोते नजाय तिम हालना वखतमांस गणीतो मुनिपण नथी तिमनावक पण नथी प रंतु देस काल नाव विचारी ध्यायाविये तदापि पो तपोतानी आम्नाय प्रमाणे धर्मकरणी करो एक बी जा ऊपर द्वेष नकरो द्वेषं अनंतो संसार बधसे ब ली केटला एक प्राचार्योयें कईएकनोला श्रावकों ने एहयो नरमाब्योबे के सामायिकमां स्तबननण वो ते पोताना गच्छना आचार्यो वली यतीसाधू नो करेलो होवे तेज नणवो बीजा गच्छना करेला कहेथी सामायिक भ्रष्ट थासे तथा पालीताणाना श्रावकने कोई नरमाव्योबेजे तपगच्छ सिवायको ईआचार्यने गाममांथी मंदिर शागलथई जावादे वो नई तेथी ते मूरख लोको एहवो हठ पकडीबे ठा जेकोई आचार्य बजारमाथी जायतो तेनेबां दवाना बदले मार आपे एहवो द्वेष राखे जिनद रसणी ऊपरे ते किमतरसे ते विचारी जोवो।
श्वेतांबरीमाथी संबत् १६३३ नीसालें साह लों का लोइयायें गुजराती लोंकोगच्छ कान्यो ते मा
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