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.. (२८) समाज धर्म संबन्धी विषयों में, पवित्र तीर्थों से सम्बन्ध रखने वाले कठिन और महत्व के प्रश्नों के विषय में जो आपने असंख्य लाभ पहुंचाये हैं, उसके लिये हम प्रत्यक्ष रूप से आपका आभार भानते हैं । आपके प्रति उच्चमान तथा प्रेम प्रदर्शित करने के लिये हम सब यहां एकत्रित हुये हैं। . इस प्रसंम को जल्दी लाने का मुख्य कारण यह है कि फत ही आप उसदेश (अमेरिका) को प्रस्थान करजाओगे जहां
आप सन् १८६३ ई० में चिकागो की धर्म परिषद में हमारे धर्म के तत्वों और रहस्य को प्रदर्शित करने के लिये जैनों के प्रतिनिधि बनकर गयेथे । यरुप और अमेरिका के श्रेष्ठ तत्व ज्ञानियों
और अच्छे विद्वानों की समता करने हिन्दुस्तान के अच्छे विद्वान गये थे। पर हमें यह जान कर बड़ा हर्ष और संतोष हुआ कि आपके व्याख्यान बड़े ध्यान से सुने गये और आप के व्याख्यानों को प्रशंसा कीगई।
उस महा समाज की बैठक पूरी होतेही आपके वास्तविक कार्यों का प्रारम्भ हुवा क्योंकि तभी से भिन्न भिन्न विचार वाले और भिन्न भिन्न स्थिति के मनुष्यों ने आपको आमन्त्रणों से और अनेक मंडलियों, सभाओं और क्लबों की प्रार्थनाओं से प्रेरित होने पर आपको वहां कुछ समय के लिये ठहरना पड़ा। विविध विषयों पर व्याख्यान और भाषण देकरही
आपने इस समय का सदुपयोग किया । यही नहीं, किन्तु भारतवर्ष के प्रतिनिधि होने के कर्तव्य को भी निबाहा । क्यों कि सारे भारतवर्ष के प्रतिनिधि के कर्तव्य का भार आप के सिर पर था । अतएव आपने भारतीय तत्वज्ञान के विषय में भी अपने विचार प्रगट किये थे। वहां के निवासियों के दिमाग में
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