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इस लिये यह १२ वीं अगस्त सन् १८६८ को भारत बापस आगये। यहां पर तीन सप्ताह रहकर अपील के सम्बन्ध का पूरा परिचय प्राप्त करके २४ बी सितम्बर १०६८ को अपने पुत्र सहित फिर विलायत चले गये। आपने वहां सेक्रेटरी आफस्टेट के यहां ऐसी योग्यता से अपील की कि कार्य सिद्ध हो गया इस प्रकार इस कार्य में भी यशस्वी होकर यह भारत लौट आए ।
तीसरी बार जब यह अमेरिका गये थे तब मांगरोल जैन सांगीत मंडली के उद्योग से स्वर्गीय न्यायमूर्ती महादेव गोविन्द राना की अध्यक्षता में एक सार्वजनिक महासभा हुई । और मि० गांधी को मान पत्र दिया गया । इसकी अंग्रेजी नकल हिन्दी अनुवाद सहित आगे छपी है ।
हमारे चरित नायक ने जैन धर्म सम्बन्धी तत्व ज्ञान: विषयक जो भाषण सार्वधर्म परिषद में दिया था उस का उस परिषद के उत्पादक और एकत्रित विद्वन्मण्डल पर ऐसा उत्कृष्ट प्रभाव पड़ा कि उन्होंने चरित नायक को एक रौप्य पदक प्रदान कर सम्मानित किया । इस सभा के भाषण को सब लोग जान जांय तथा जैन धर्म के तत्वों की उत्तमता को सबलोग समझ जायें इसलिये इन्होंने अमेरिका के प्रसिद्ध २ शहर वोस्टन न्यूयार्क, वाशिंगटन आदि शहरों में जैन धर्म पर व्याख्यान दिये । जैन धर्म का रहस्य, उसकी व्यापकता, और सुन्दरता श्रोताओं को समझाई। कासाडोग नामक शहर के सब निवासी इनके जैन धर्म सम्बन्धी भाषण. से ऐसे संतुष्ट हुये कि उन्होंने मि गांधी को एक स्वर्ण पदक समर्पण किया । ये भाषण जैन धर्म क्या है? ( what is Jainism ) जैनियों का तत्व ज्ञान और मानस शास्त्र'
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