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रा० वीरचन्द पृथक पृथक उपयोगी और समाज हित कारक कार्य संस्था से पास कराने की योजना करते गये और इस लिये इस संस्था का हिन्दुस्तान में प्रभाव बढ़तागया। पहला कार्य जैन समाज और पालीताणा के ठाकर सूरजसिंह के बीच पैदा होने वाले बंधान के विषय में था। ____ यह सब को विदित है कि शत्रुञ्जय पर्वत अकबर बादशाह
और नगर सेठ शान्तिदास के समय से ही चताम्बर जैनों के अधिकारमें था उसी वादशाह तथा उसके पीछे गीपर बैठने वाले जहांगीर शाहनशाह आदि बादशाहों के समय में ताम्र पट्ट पर खुदे हुये फरमान का उपयोग न होन के कारण उसकी हुकूमत गवर्नर के पास दो बार तार दिये गय । ता० १८ जुलाई को पूना में गवर्नर लार्डरे ने जैन डेप्यूटेशन से मुलाकात की। पीछे सोनागढ़ के असिस्टेन्ट पोलिटिकल एजन्ट कप्तान फोरडायस ने एक तर्फी ( एक पक्षी ) खोज की। पश्चात् सरकार की ओर से यह निश्चय हुआ कि पालीताणा दरबार ने जैन नौकरों के ऊपर जो अत्याचार किया है उसका निर्णय करने के लिये सोनागढ़ में खोज की है और पालीलाणा कोर्ट में जैन नौकरों के सम्बन्धी केस को असिस्टेन्ट पो० ओ० नीकी कोर्ट में ले जाओ । इस पर पालीताणा दरबार महावलेश्वर के गवर्नर पर अज करने गया। और वीरचन्द और दूसरे जैन अगुआ भी गवर्नर के पास गये । इधर कार्तिक बदी ३ सं० १६४२ में ठाकुर सूरजसिंह की मृत्यु होगई। यों यह मामला बन्द होगया पश्चात गद्दी पर ठाकुर मानसिंह बैठे । इस के पश्चात् उन से शतनामा ही होगया।
(अनुवादक)
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