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श्री विपाकसूत्र
[विषयानुक्रमणिका विषय पृष्ठ, विषय
पृष्ठ अथ अष्टम अध्याय सिंहसेन राजा का श्यामादेवी के अतिरिक्त ४८८ शौरिकदत्त का संक्षिप्त परिचय।
शेष रानियों की माताओं को आमंत्रित श्री गौतम स्वामी जी का एक दयनीय व्यक्ति ४२८ करना और कूटाकारशाला में अवस्थित को देख कर भगवान् से उस के पूर्वभव के उन माताओं को अग्नि के द्वारा जला देना विषय में पूछना और भगवान का पूर्वभव
अन्त में अपने दुष्कर्मों के परिणामस्वरूप विषयक प्रदिपादन करना ।
उस का नरक में उत्पन्न होना । श्रीयक रसोइए का मांसाहारसम्बन्धी वर्णन ४३२ सिंहसेन राजा के जीव का रोहितक नगर ४६४ करने के अनन्तर उस का नरक में उत्पन्न में दत्त सार्थवाह की कृष्णश्री भार्या के होने का निरूपण करना।
यहां पुत्रीरूप से उत्पन्न होना। मदिरापान के कुपरिणामों का निरूपण । ४४० देवदत्ता का पुष्यनन्दी के लिए भार्यारूप से ४६८ नरक से निकल कर श्रीयक का समुद्रदत्ता के ४४७ मांगा जाना। यहां उत्पन्न होना और उस का शौरिकदत्त पुष्यनंदी राजकुमार का देवदत्ता के साथ ५०४ नाम रखा जाना।
विवाहित हीना। शौरिकदत्त का मच्छीमारों का मुखिया ४५० | पुष्यनन्दी राजा का अपनी माता श्री देवी ५०६
मी मारने के बारे में प्रगति की अत्यधिक सेवाशुश्रूषा करना । शील होना।
महारानी देवदत्ता द्वारा अपनी सास श्री- ५१३ शौरिकदत्त के गले में एक मत्स्यण्टक का ४५४ /
देवी का क्रूरतापूर्ण वध किया जाना । लग जाना, परिणामस्वरूप उस का अत्यन्ता- पुष्यनंदी राजा द्वारा महारानी देवदत्ता का ५१६ त्यन्त पीड़ित होना ।
मातृहत्या की प्रतिक्रिया के रूप में वध शौरिकदत्त के आगामी भवों के सम्बन्ध में ४६०
करवाना।
देवदत्ता के अगामी भवों के सम्बन्ध में ५२२ गौतम स्वामी का भगवान से पूचना और भगवान् का उस के अग्रिम भवों का मोक्ष
गौतम स्वामी का भगवान से पूछना। पर्यन्त वर्णन करना।
| भगवान महावीर द्वारा मोक्षपर्यन्त देवदत्ता ५२२
के आगामी भवों का वर्णन करना । अथ नवम अध्याय गौतमस्वामी जी का एक अत्यन्त दुःखी स्त्री ४६५
अथ दशम अध्याय को देख कर भगवान महावीर स्वामी से दशम अध्याय की उत्थानिका । ५२५ उस के पूर्वभव के सम्बन्ध में पूछना । श्री गौतम स्वामी जी का एक अति दुःखित ५२६ सिंहसेन राजकुमार का संक्षिप्त परिचय । ४६६ । स्त्री को देख कर उस के पूर्व भव के सम्बन्ध सिंहसेन राजा का श्यामादेवी रानी में आसक्त ४७६ | में भगवान से पूछना । भगवान का हो कर शेष रानियों का आदर न करना। | पूर्वभव के विषय में प्रतिपादन करना। सिंहसेन राजा का शोकग्रस्त श्यामादेवी को ४८४ | इस जीव का पृथिवीश्री गणिका के भव में ५३०
आश्वासन देना, तथा अपने नगर में एक व्यभिचारमूलक पाप कर्मों के कारण मर कर महती कूटाकारशाला का निर्माण कराना । नरक में जाना वहां से निकल कर अजूश्री
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