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श्री विपाकसूत्र
[विषयानुक्रमणिका
विषय
पृष्ठ | विषय राजा द्वारा उस का सम्मानित किया जाना, सुषेण मंत्री का शकटकुमार को सुदर्शना ३०२ तथा उस का कुटाकारशाला में ठहराया जाना। वेश्या के साथ कामभोग करते हुए देख राजा द्वारा नगर के द्वार बन्द करा देना २६६ कर क्रुद्ध होना । अपने पुरुषों द्वारा दोनों को और अभग्नसेन को जीते जी पकड़ लेना पकड़वाना और राजा द्वारा इन के वध की तथा राजा की आज्ञा द्वारा उस का वध आज्ञा दिलवाना। किया जाना।
अनगार गौतम स्वामी का शकटकुमार के ३०६ चोरसेनापति के आगामी भवों के सम्बन्ध में २७१ आगामी भवों के सम्बन्ध में प्रश्न करना। अनगार गौतम का भगवान से पूछना भगवान महावीर का शकटकुमार के आगामी ३०७ और भगवान का उत्तर देना ।
भवों का मोक्षपर्यन्त वर्णन करना । अथ चतुर्थ अध्याय | मांसाहार का निषेध ।
३१३ चतुर्थ अध्याय की उत्थानिका ।। २७६ साहञ्जनी नामक नगरी की सुदर्शना नामक २८०
अथ पञ्चा अध्याय वेश्या तथा सुभद्र सार्थवाह के पुत्र शकट- नगरी, राजा, वृहस्पतिदत्त तथा इस के परिवार ३१७ कुमार का संक्षिप्त परिचयः ।।
| का संक्षिप्त परिचय । जनसमूह के मध्य में अवकोटक बन्धन से २८४ गौतम स्वामी का राजमार्ग में एक वध्य पुरुप ३२० युक्त स्त्रीसहित एक वध्य पुरुष को देख कर को देखना और उस के पूर्वभव के विषय उस के पूर्व भव के विषय में अनगार में भगवान महावीर से पूछना । गौतम स्वामी का श्री भगवान महावीर से पूर्वभव को बताते हुए भगवान का सर्वतोभद्र ३२१ प्रश्न करना।
नगर में जितशत्रु राजा के महेश्वरदत्त भगवान का यह फरमाना कि वध्य व्यक्ति २८७ पुरोहित द्वारा किए जाने वाले कर हिंसक पूर्व भव में छएिणक नामक छागलिक | यज्ञ का वर्णन करना। (कसाई) था। वह मांस द्वारा अपनी आजी- क्र रकर्म के द्वारा महेश्वरदत्त पुरोहित का ३२७ विका किया करता था तथा स्वयं भी मांसाहारी । पंचम नरक में उत्पन्न होना। था । फलतः उसका नरक में उत्पन्न होना। नरक से निकल कर कौशाम्बी नगरी में ३२८ नरक से निकल कर छरिणक छागलिक के २६३ सोमदत्त पुरोहित की वसुदत्ता नामक भार्या जीव का साहञ्जनी नगरी में सुभद्र सार्थवाह की कुक्षि में महेश्वरदत्त पुरोहित के जीव के घर में उत्पन्न होना । उस का शकटकुमार का उत्पन्न होना । जन्म होने पर उस का नाम रखा जाना । मातापिता का मृत्यु को । वृहस्पतिदत्त' यह नामकरण किया जाना । प्राप्त होना। शकटकुमार को घर से निकाल वृहस्पतिदत्त को रानी पद्मावती के साथ देना, उस का सुदर्शना वेश्या के साथ कामक्रीड़ा करते हुए देख कर उदयन राजा रमण करना । सुषेण मंत्री द्वारा शकटकुमार का उस के वध के लिए आज्ञा देना तथा को वहां से निकाल कर सुदर्शना को अपने राजाज्ञा द्वारा उस का वध किया जाना। घर में रख लेना।
गौतम स्वामी का वृहस्पतिदच पुरोहित के ३३४
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