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अथ सप्तम अध्याय..
यह अध्याय भी छठे अध्याय की भाँति सपात्रदान की महिमार्थ ही वर्णित हुआ है। इस के मुख्यनायक श्री महाबलकुमार हैं । इन की जीवनगाथा इस में अंकित की गई है। इनका विवरण निम्नोक्त है -
मल-'सत्तमस्स उक्खेवो । महापुरं णगरं । रत्तासोगं उज्जाणं । रत्तपाओ जक्खो । चले राया । सुभदा देवो । महब्बले कुमारे । रत्तवतीपामोक्खाणं पंचसयाणं रायवरकन्नगाणं पाणिग्गहणं । तित्थगरागमणं जाव पुव्वभवो । मणिपुरं णगरं । णागदचे गाहावती । इंददचे अणगारे पडिलाभिते जाव सिद्ध । निक्खेवो ।
॥ सत्तमं अज्झयणं समत्॥ पदार्थ-सत्तमस्स- सप्तम अध्ययन का। उक्खेवां-उत्क्षेप - प्रस्तावना पूर्ववत् जानना चाहिए। महापुरं-महापुर । णगरं - नगर था । रत्तासोगं- रक्ताशोक । उज्जाणं-उद्यान था । रत्तपात्रोरक्तपाद नामक । जक्वा - यक्ष का यक्षायतन था। बले- बल नामक । राया-राजा था। सुभद्दासुभद्रा नामक । देवी -देवी- रानी थी । महब्बले – महाबल । कुमारे-कुमार था । रत्तवतीपामोकमाणं- रक्तवतीप्रमुख । पंचसयाणं-५०० । रायवरकन्नगाणं-श्रेष्ठ राजकन्याओं' के साथ । पाणिगह-पाणिग्रहण - विवाह हुआ। तित्थगगगमणं-तीर्थकर भगवान का आगमन हुआ । जाव - यावत् । पृथ्वभवो - पूर्वभव की पृच्छा की गई । मणिपुरं-मणिपुर । णगरं- नगर था। णागदत्त - नागदत्त । गाहावती-गायापति था। इंददत्त -इन्द्रदत्त । अणगारे-अनगार को । पडिलाभितेप्रतिलाभित किया गया । जाव-यावत् । सिद्ध - सिद्ध हुा । निक्खेवो निक्षेप -उपसंहार की कल्पना पूर्व की भांति कर लेनी चाहिये । सत्तमं-सातवां । अज्झय-अध्ययन । समत्त-सम्पूर्ण हुा ।
मूलाथे-सप्तम अध्ययन का उत्क्षेप-प्रस्तावना पूर्व की तरह जान लेना चाहिये । जम्बू ! महापुर नामक नगर था। वहां रक्ताशोक नाम का उद्यान था, उस में रक्तपाद यक्ष का विशाल स्थान था। नगर में महाराज बल का राज्य था। उन की रानी का नाम सुभद्रा देवी था । इन के महाबल नाम का राजकुमार था । उस का रक्तवतीप्रधान ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण-विवाह किया गया।
उस समय तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी पधारे। तदनन्तर महाबल राजकुमार का
(१) छाया- सप्तमस्योत्क्षेप: । महापुरं नगरम् । रक्ताशोकमुद्यानम् । रक्तपादो यक्ष: । बलो राजा। सुभद्रा देवी। महाबलः कुमारः। रक्तवतीप्रमुखाणां पंचशतानां राजवरकन्यकानां पाणिग्रहणम् । तीर्थकरागमनम् । यावत् पूर्वभवः । मणिपुरं नगरम् । नागदत्तो गाथापतिः । इन्द्रदत्तोऽनगारः । प्रतिलाभितो यावत् सिद्धः। निक्षेपः ।
॥ सप्तमध्ययनं समाप्तम् ॥
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