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प्रथम अध्याय]
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
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के श्रवण से महान् फल होता है, तब विशाल अर्थ के ग्रहण करने से तो कहना ही क्या ? अर्थात् उस का वर्णन करना शक्य नहीं है । इसलिये हे भद्रपुरुषो ! चलो, और हम सब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की स्तुति करें, उन्हें नमस्कार तथा उन का सत्कार एवं सम्मान करें। भगवान् कल्याण करने वाले हैं, मंगल करने वाले हैं, आराध्य देव है, ज्ञानस्वरूप है, अत: इन की सेवा करें । भगवान् को की हुई वन्दना श्रादि हमारे लिये परलोक और इस लोक में हितकारी, सुखकारी, क्षेमकारी, मोक्षप्रद होने के साथ २ सदा के लिये जीवन को सुखी बनाने वाली होगी । इस प्रकार बातें करते हुए बहुत से उग्र- प्राचीन काल के क्षत्रियों की एक जाति जिस की भगवान् श्री ऋषभदेव ने श्रारक्षक पद पर नियुक्ति की थी, उग्रपुत्र- उग्रक्षत्रियकुमार, भोग-श्री ऋषभदेव प्रभु द्वारा गुरुस्थान पर स्थापित कुल, भोगपुत्र, राजन्य-भगवान श्री ऋषभ प्रभु द्वारा मित्रस्थान पर स्थापित वंश, राजन्यपुत्र, क्षत्रिय, क्षत्रियपुत्र, ब्राह्मण, ब्राह्मणपुत्र. भट-शूरवीर, भटपुत्र, योधा-सैनिक, योधपुत्र, प्रशास्ता-धर्मशास्त्र के पढ़ने या पढ़ाने वाला, प्रशास्तूपुत्र, मल्लकी-नृपविशेष, मल्लकिपुत्र, लेच्छकि-नृपविशेष, लेच्छकिपुत्र, इन सब के अतिरिक्त और बहुत से राजा, ईश्वर-युवराज, तलवर-परितुष्ट राजा से दिये गये पट्टवन्ध से विभूषित नृप, माडम्बिक-मडम्ब (जिस के चारों ओर एक योजन तक कोई ग्राम न हो) का स्वामी, कौटुम्बिक-कई एक कुटुम्बों का स्वामी, इभ्य-बहुत धनी, श्रेष्ठी-सेठ,सेनापतिसेनानायक; सार्थवाह - संघनायक आदि इन में कई एक भगवान् को वन्दना करने के लिये, कई एक पूजन-आदर, सत्कार, सम्मान, दशन, कौतुहल के लिये, कई एक पदार्थों का निर्णय करने के लिये, कई एक अश्रत पदार्थों के श्रवण और श्रुत के सन्देहापहार के लिये, कई एक जीवादि पदार्थों को अन्वयव्यतिरेकयुक्त हेतुओं, कारणों, व्याकरणों अर्थात् दूसरे के प्रश्नों के उत्तरो को पूछने के लिये, कई एक दीक्षित होने के लिए, कई एक श्रावक के १२ व्रत धारण करने के लिये, कई एक तीर्थकरों की भक्ति के अनुराग से, कई एक अपनी कुलपरम्परा के कारण वहां जाने के लिये स्नानादि कार्यों से निवृत्त हो तथा अनेकानेक वस्त्राभूषणों से विभूषित हो, कई एक घोड़ों पर सवार हो कर, इसी भाँति कई एक हाथी, रथ, शिविका - पालकी पर सवार हो कर तथा कई एक पैदल ही इस प्रकार उग्रादि पुरुषों के झुण्ड के मुण्डों नाना प्रकार के शब्द तथा अत्यधिक कोलाहल करते हुए क्षत्रिय - कुण्डग्राम नामक नगर के मध्य में से निकलते हैं, निकल कर जहां ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर था और जहां बहुशालक नामक उद्यान था, वहां पहुंचे और भगवान् के छत्रादि रूप अतिशयों को देख कर अपने २ वाहन से नीचे उतरे और भगवान् के चरणों में उपस्थित हुए, वहां वन्दना, नमस्कार करने के पश्चात् यथास्थान बैठ कर भगवान की पर्युपासना करने लगे।
अपने महल में प्रानन्दोपभोग करते हुए जमालि ने जब यह कोलाहलमय वातावरण जाना तब उस के हृदय में यह इस प्रकार का अध्यवसाय उत्पन्न हुअा कि आज क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर में क्या इन्द्र का महोत्सव है १ अथवा स्कन्द-कार्तिकेय, मुकुन्द-वासुदेव अथवा बलदेव, नाग, यक्ष, भूत, कूप, तडाग, नदी, हृद. पर्वत, वृक्ष, चैत्य अथवा स्तूप का महोत्सव है , जो ये बहुत से उग्रवंशीय, भोगवंशीय
आदि लोग स्नान, वस्त्राभूषणादि द्वारा विभूषा किये हुए तथा नाना प्रकार के वाहनों पर आरूढ़ हुए २ एवं अनेकानेक शब्द बोलते हुए क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर के मध्य में से निकल रहे हैं। इस प्रकार विचार कर उस ने द्वारपाल को बुलाया और उसे बोला कि हे भद्र पुरुष ! आज क्या बात है ?, जो अपने नगर में या कोलाहल हो रहा है ?, क्या आज कोई उत्सव है ? जमालि के इस प्रश्न के उत्तर में वह बोला कि महाराज ! उत्सवविशेष तो कोई नहीं है किन्तु नगर के बाहिर बहुशालक नामक उद्यान में श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे हुए हैं । ये लोग उन्हीं के चरणों में अपनी २ भावमा के अनुसार उपस्थित होने के लिए जा रहे हैं। द्वारपाल की इस बात को सुन कर जमालि पुलकित हो उठा और उस ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को
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