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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्री विपाक सूत्रीय द्वितीय श्रुतस्कन्ध [प्रथम अध्याय कोष्ठागार-धान्यगृह तथा आयुधागार-शस्त्रशाला, ये सब परिपूर्ण थे, अर्थात् यंत्र पर्याप्तमात्रा में थे और उन से कोषादि भरे हुए रहते थे। उस के पास विशाल सेना थी। उस के पड़ोसी राजा निबल थे अर्थात् वह बहुत बलवान् था । उस ने स्पर्धा रखने वाले समानगोत्रीय व्यक्तियों का विनाश कर डाला था, इसी भान्ति उस ने उन की सम्पत्ति छीन ली थी, उन का मान भंग कर डाला था, तथा उन्हें देशनिर्वासित कर दिया था, इसी लिये उस के राज्य में कोई स्पर्धा रखने वाला समानगोत्रीय व्यक्तिरूप कण्टक नहीं रहने पाया था। उस ने अपने शत्रों-असमानगोत्रीय स्पर्धा रखने वाले व्यक्तियों का विनाश कर डाला था, उन की सम्पत्ति छीन ली थी, उन का मान भंग कर डाला था, तथा उन्हें देश से निकाल दिया था। उस राजा ने शत्रुओं को जीत लिया था तथा उन्हें पराजित अर्थात् पुन: राज्य प्राप्त करने की सम्भावना भी जिन की समाप्त कर दी गई हो, ऐसा कर डाला था। वह ऐसे राज्य का शासन करता हुआ विहरण कर रहा था, जिस में दुर्भिक्ष-अकाल नहीं था, जो मारी-प्लेग के भय से रहित था, क्षेमरूप था, अर्थात् वहां लोग कुशलतापूर्वक रहते थे। शिव. रूप-सुखरूप था । जिस में भिक्षा सुलभ थी, जिस में डिम्बों - विनों और डमरों-विद्रोहों का अभाव था। "-सीहं सुमिणे जहा मेहजम्मणं तहा भाणियवं-"इस पाठ में सूत्रकार ने सुबाहुकुमार के जीवन की जन्मगत समानता मेघकुमार से की है । मेघकुमार कौन था ?, उस ने कहां पर जन्म लिया था ? और उस के माता पिता कौन तथा किस नाम के थे १, इत्यादि बातों के जानने की इच्छा सहज ही उत्पन्न होती है। तदर्भ मेषकुमार के प्रकृतोपयोगी जीवनवृत्तान्त को संक्षेप से वर्णन कर देना भी आवश्यक प्रतीत होता है राजगृह नाम की एक प्रसिद्ध नगरी थी। उस के अधिपति -नरेश का नाम श्रेणिक था । उन की पट्टरानी का नाम धारिणी था। एक बार महारानी धारिणी राजोचित उत्तम वासगृह में आराम कर रही थी उस ने अर्धजागृत अवस्था में अर्थात् स्वप्न में एक परम सुन्दर तथा जम्भाई लेते हुए, आकाश से उतर कर मुंह में प्रविष्ट होते हाथी को देखा । इस शुभ स्वप्न के देखने से रानी की नींद खुल गई । तदनन्तर वह अपना उक्त स्वप्न पति को सुनाने के लिये अपनी शय्या से उठ कर पति के शयनस्थान की ओर चली । पति की शय्या के समीप पहुँच कर धारिणो देवी ने अपने पति महाराज श्रेणिक को जगाया और उन से अपना स्वप्न कह सुनाया तदनन्तर फलजिज्ञासा से वह वहां बैठ गई। धारिणी से उस के स्वप्न को सुन कर महाराज.श्रोणिक को बहुत हर्ष हुआ। वे धारिणी से बोले कि प्रिये ! यह स्वप्न बड़ा शुभ है, इस के फलस्वरूप तुम्हारी कुक्षि से एक बड़े भाग्यशाली पुत्र का जन्म होगा जो कि परम यशस्वी और कुल का प्रदीप होगा। पति के मुख से उक्त शन्दों को सुन कर उन को प्रणाम कर के यह रानी धारिणी अपने शयनागार में चली गई और कोई अनिष्टोत्पादक स्वप्न न आए इन विचारों से शेष रात्रि को उस ने धर्मजागरण से ही व्यतीत किया। दूसरे दिन प्रातःकाल आवश्यक कार्यों से निवृत्त हो कर महाराज श्रेणिक ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा स्वप्नशास्त्रियों को आमंत्रित किया और धारिणी देवी के स्वप्न को सुना कर उन से उस के शुभाशुभ फल की जिज्ञासा की । इस के उत्तर में स्वप्नशास्त्रों के वेत्ता विद्वानों ने इस प्रकार कहना प्रारम्भ किया___महाराज ! स्वप्नशास्त्र में ७२ प्रकार के शुभ स्वप्न कहे हैं। उन में ४२ साधारण और ३० विशेष माने हैं, अर्थात ४२ का तो शुभ फल सामान्य होता है और ३० विशिष्ट फल के देने वाले हैं। जिस समय अरिहंत या चक्रवती अपनी माता के गर्भ में आते हैं, तब उन की माताएं इन तीस प्रकार के विशिष्ट स्वप्नों में से १४ स्वप्नों को देख कर जागती हैं, प्रत्युत जब वासुदेव गर्भ में आते हैं तब उन की मातायें इन चौदह स्वप्नों में से किन्हीं सात स्वप्नों को देखती हैं और जब बलदेव गर्भ में आते हैं तो उन की मातायें इन चौदह स्वप्नों में से किन्हीं चार स्वप्नों को देख कर For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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