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प्रथम अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
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शिष्य हो गये थे, तथा भगवान् के चरणों में ज्ञानाराधन; दर्शनाराधन तथा चारित्राराधन की उत्कर्षता को प्राप्त कर उन्हों ने गणधर पद को उपलब्ध किया था ।
प्रस्तुत में जो श्री सुधर्मा स्वामी का वर्णन किया गया है, ये भगवान् महावीर स्वामी के ही पूर्वोक्त पांचवें गणधर हैं । आज का जैनेन्द्र प्रवचन इन्हीं की वाचना कहलाता है। यही आर्य जम्ब स्वामी के परमपूज्य गुरुदेव हैं। इन्हीं के श्रीचरणों में रहकर श्री जम्बूस्वामी अपनी ज्ञान-पिपासा को जैनेन्द्र प्रवचन के जल से शान्त करते रहते हैं । श्री जम्बूस्वामी का जीवनपरिचय पीछे दुःखविपाक के पृष्ठ २ से लेकर ५ की टिप्पण में दिया जा चुका है पाठक वहीं से देख सकते हैं।
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विपाकत का शब्दसन्बन्धी ऊहापोह पीछे पृष्ठ २० पर किया जा चुका है। विपाकश्रुत के दुःखविपाक और सुखविक ऐसे दो श्रतस्व है । दुःखविपाक आदि पदों का अर्थ भी पृष्ठ २१ पर लिख दिया गया है । दुःखविपाक के मृगापुत्र आदि दश अध्ययन हैं, जिन का विवरण पहले कर दिया गया है । दुःखविपाक के अनन्तर सुखविपाक का स्थान है, इस में सुबाहुकुमार आदि दश अध्ययन । प्रस्तुत में - सुबाहुकुमार कौन था ?, उस ने कहां जन्म लिया था ?, वह किस नगर में रहता था ?, उस के माता पिता का क्या नाम था १, उस ने किस तरह जीवन का निर्माण एवं कल्याण किया १, मानव से महामानव वह कैसे बना ?, इत्यादि प्रश्न श्री जम्बूस्वामी की ओर से श्री सुधर्मा स्वामी के चरणों में रखे गये हैं, उन का उत्तर ही प्रस्तुत अध्ययन का प्रतिपाद्य विषय है ।
- जम्बू जाव पज्जुवासति - यहां पठित जाव यावत् पद से - णामं अणगारे कासवगोरोणं सत्तस्सेहे समचउरंस संठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे कणगपुलगणिघसपम्हगोरे उग्गतवे दिखतवे तत्ततषे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्ती घोरबंभवेरवासी ऊछूढसरीरे संखितविउलतेउलेसे चोइसपुन्वी चढणाणोवगए सव्वक्बरसनिवाई श्रज्ज सुहम्मस्स थेरस अदूरसामंते उड्ढा होसिरे झाणकोट्ठोवगते संजमेणं तवसा अप्पा भावेमाणे विहरति । तते गं श्रज्ज - जम्बू णामं अणगारे जायसड्ढे जायसंसर जायको उहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोउहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उत्पन्नसंसप उप्पन्नको हल्ले, समुप्पन्न सड्ढे समुप्पन्नसंसप समुप्पन्नको उहल्ले उट्ठाए उट्ठेति उट्ठाए उट्टेत्ता जेणामेव श्रज्जसुहम्मे थेरे तेणामेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता प्रज्जसुहम्मे थेरे तितो याहिणं पयाहिणं करेति करिता वंदति नम॑सति वन्दित्ता नर्मसिता श्रज्ज - सुहम्मस्स थेरस्स नच्चासन नाइदूरे सुस्सूसमाणे जमंसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणणं-इन पदों का ग्रहण करना चाहिये। इन पदों का अर्थ निम्नोक्त है -
जम्बू नगर सुधर्मा स्वामी के पास संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विहरण कर रहे थे, जो कि काश्यपगोत्र वाले हैं, जिन का शरीर सात हाथ प्रमाण का है, जो पालथी मार कर बैठने पर शरीर की ऊंचाई और चौड़ाई बराबर हो ऐसे संस्थान वाले हैं, जिन का 'वर्षभनाराच संहनन है, जो सोने की रेखा के समान और पद्मपराग (कमलरज) के समान वर्ण वाले हैं, जो उग्र तपस्वी – साधारण मनुष्य की कल्पना से अतीत को उग्र कहते हैं, ऐसे उम्र तप के करने वाले, दीप्ततपस्वी - कर्मरूपी गहन वन को भस्म करने में समर्थ तप के करने वाले, तप्ततपस्वी - कर्मसंताप के विनाशक तप के करने वाले और महातपस्वी स्वर्गादि की प्राप्ति की इच्छा बिना तप करने वाले हैं, जो उदार प्रधान हैं, जो श्रात्मशत्रुओं के विनष्ट करने में निर्भीक हैं, जो दूसरों के द्वारा दुष्प्राप्य गुणों को धारण करने वाले हैं, जो घोर-विशिष्ट तपस्वी (१) वज्रर्षभानाच संहनन का अर्थ पृष्ठ २७३ पर लिखा जा चुका है।
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