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५४०]
श्री विपाक सूत्र
[दशम अध्याय
पदार्थ-गोतमा !-हे गौतम !। अञ्जू देवी-जूदेवी । नउई-नवति (९०) । वासाई | वर्षों की । परमा-परम आयु । पालइत्ता-पाल कर । कालमासे-कालमास में । कालं किच्चा-काल कर के । इमीसे-इस । रयणप्पभाए -रत्नप्रभा नामक । पुढवीए-पृथिवी में । णेरइयत्ताए-नारकीरूप से । उववन्जिहिद-उत्पन्न होगी। एवं-इस प्रकार । संसारो-संसारभ्रमण । जहा- जैसे। पढमोप्रथम अध्ययन में प्रतिपादन किया है। तहा-तथा-उसी तरह । णेयव्वं-जानना चाहिए । जाव-यावत् । वणस्सति०-वनस्पतिगत निम्बादि कटु वृक्षों तथा कटु दुग्ध वाले अर्कादि के पौधों में लाखों वार उत्पन्न होगी। साणं-वह । ततो-वहां से । अणंतरं-व्यवधानरहित । उव्वहिता-निकल कर । सव्वोभद्दे-सर्वतोभद्र । णगरे-नगर में । मयूरत्ताए-मयूर-मोर के रूप में। पच्चायाहिति-उत्पन्न होगी। से णं-वह मोर । तत्थ-वहां पर । साउणिएहिं-शाकुनिकों-पक्षिघातक शिकारियों के द्वारा। वधिते समाणे-वध किया जाने पर । तत्थेव-उसी । सव्वोभद्दे-सर्वतोभद्र । णगरे- नगर में । सेठ्ठिकुलंसि-वेष्ठिकुल में । पुत्तत्ताए-पुत्ररूप से । पच्चायाहिति-उत्पन्न होगा। सेणं-वह। तत्थ-- वहां पर । उम्मुक्कबालभावे०-बालभाव को त्याग कर -यौवनावस्था को प्राप्त हुए तथा विज्ञान की , परिपक्व अवस्था को प्राप्त किए हुए। तहारूवाणं-तथारूप । थेराणं-स्थविरों के । अंतिए-समीप । केवलं-केवल अर्थात् शंका, आकांक्षा आदि दोषो से रहित । बोधि-बोधि (सम्यक्त्व) को। बुझिहितिप्राप्त करेगा, तदनंतर । पव्वज्जा०-प्रव्रज्या ग्रहण करेगा, उस के अनन्तर । सोहम्मे० -सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा । ततो-तदनन्तर । देवलोगाश्रो-वहां की अर्थात् देवलोक की । उक्खएणंआयु पूर्ण कर। कहि-कहां । गच्छिहिति ? -जायेगा । कहि-कहाँ । उववज्जिहिद ? -- उत्पन्न होगा। गोतमा!-हे गौतम! । महाविदेहे-महाविदेह क्षेत्र में (जायेगा और वहां उत्तम कल में जन्मेगा) । जहा पढमे-जैसे प्रथम अध्ययन में वर्णन किया है , तद्वत् । जाव-यावत् । सिज्झिहिति-सिद पद को प्राप्त करेगा। जाव-यावत् । श्रतं काहिति-सर्व दुःखों का अन्त करेगा। एवं इस प्रकार । खलुनिश्चय ही । जम्बू !- हे जम्बू ! । समणेणं-श्रमण । जाव-यावत् । संपत्रोणं-सम्प्राप्त ने । दुहविवागाणं-दुःखविपाक के । दसमस्स-दसवें । अज्झयणस्स-अध्ययन का । अयम? - यह अर्थ । पएणत्ते-प्रतिपादन किया है । भंते ! हे भगवन् ! । सेवं-वह इसी प्रकार है । भंते ! हे भगवन् ! । सेवं - वह इसी प्रकार है । दुहविवागेसु-दु:खविपाक के । दससु-दस | अज्झयणेसु-अध्ययनों में । पढमो-प्रथम । सुयश्खंधो-श्रुतस्कन्ध । समत्तो-सम्पूर्ण हुआ।
मूलार्थ-हे गौतम ! अंजदेवी ९० वर्ष को परम आयु को भोग कर कालमास में काल करके इस रत्नप्रभा नामक पृथिवी में नारकीरूप से उत्पन्न होगी। उस का शेष संसारभ्रमण प्रथम अध्ययन की तरह जानना चाहिए यावत् वनस्पतिगत निम्बादि कटुवृक्षों तथा कटुदुग्ध वाले अर्क आदि पौधों में लाखों बार उत्पन्न होगी, वहां की भवस्थिति को पूर्ण कर वह सर्वतोभद्र नगर में मयूर-मोर के रूप में उत्पन्न होगी। वहां वह मोर पक्षिघातकों के द्वारा मोरा जाने पर उसी सवतोभद्र नगर के एक प्रसिद्ध श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूप से उत्पन्न होगा। वहां बालभाव को त्याग, यौवन अवस्था को प्राप्त तथा विज्ञान की परिपक्व अवस्था को उपलब्ध करता हुआ वह 'तथारूप स्थविरों के समीप बोधिलाभ-सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा। तदनन्तर प्रव्रज्या-दीक्षा ग्रहण करके, मृत्यु के बाद सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होगा। गौतम- भगवन् ! देवलोक की आयु तथा स्थिति पूरी होने के बाद वह कहां जायगा ?, कहां उत्पन्न
(१) तथारूप स्थविर का अर्थसम्बन्धी ऊहापोह पृष्ठ ९७ पर किया जा चुका है।
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