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५२८]
श्री विपाक सूत्र--
[दशम अध्याय
टीका-विपाकसूत्र के नवम अध्ययन में वर्णित दत्त सेठ को पुत्री और कृष्णश्री की अात्मजा देवदत्ता के वृत्तान्त का श्राद्योपान्त, कर्मगत विचित्रता से गर्भित जीवनवृत्तान्त का चम्पानगरी के पूर्णभद्र चैत्य – उद्यान में विराजमान श्रार्य सुधर्मा स्वामी के अन्तेवासी-शिष्य श्री जम्बू स्वामी ध्यानपूर्वक मनन करने के अनन्तर आर्य सुधर्मा स्वामी के चरणों में उपस्थित हो कर विनयपूर्वक निवेदन करने लगे -भगवन् ! आप के परम अनुग्रह से मैंने विपाकश्रुत के दुःखविपाक के नवम अध्ययन के अर्थ का श्रवण किया और उस का चिन्तन तथा मनन भी कर लिया है। अब मेरी इच्छा उस के दसवें अध्ययन के अर्थश्रवण की हो रही है, अतः आप श्री उस को भी सुनाने की कृपा करें।
सर्वज्ञप्रणीत निग्रंथप्रवचन के महान् जिज्ञासु आर्य जम्बू स्वामी की उक्त विनीत प्रार्थना को सुन कर परमदयालु श्री सुधर्मा स्वामी बोले जम्बू ! बहुत पुराने समय की बात है, जब कि वर्द्धमानपुर नाम का एक प्रसिद्ध नगर था, उस के बाहिर ईशान कोण में अवस्थित विजयवर्द्धमान नाम का एक रमणीय उद्यान था, उस में माणिभद्र नाम के यक्ष का एक सुप्रसिद्ध स्थान था, जिस के कारण उद्यान में बड़ी चहल पहल रहती थी। नगर के शासक विजयमित्र नाम के नरेश थे । इस के अतिरिक्त उस नगर में धनदेव नाम का एक सुप्रसिद्ध धनी, मानी सार्थवाह रहता था, उसकी प्रियंगू नाम को भार्या और अंजू नाम की एक अत्यंत रूपवती कन्या थी।
उस समय विज्यवर्धमान उद्यान में चरम तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामी का पधारना हुअा, उन को धर्मदेशना सुन कर जनता के च ने जाने के बाद उन के प्रधान शिष्य गौतम स्वामी भगवान् से आज्ञा ले कर जब भिक्षा के लिये नगर में जाते हैं तब उन्हों ने महाराज विजयमित्र के महल की अशोकवाटिका के समीप से जाते हुए वहां एक स्त्री को देखा । उस की दशा बड़ी दयाजनक थी। शरीर सूखा हुआ, भूख के कारण शरीरगत रुधिर और मांस भी शरीर में दिखाई नहीं देता था, केवल चमड़े में लिपटा हुआ अस्थिपंजर ही नज़र आता था, इस के अतिरिक्त उस का शब्द भी बड़ा करुणोत्पादक और दीनतापूर्ण था, उसके शरीर पर नीली साड़ी थी । गौतम स्वामी इस दृश्य से बड़े प्रभावित हुए, उन्हों ने वापिस आकर भगवान् से सारा वृत्तान्त कहा और उस स्त्री के पूर्वभव की जिज्ञासा की । यही सूत्रगत वर्णन का संक्षिप्त सार है।
उक्खेव-उत्क्षेप प्रस्तावना का नाम है । विपाक सत्र के दुःखविवपाक के दशम अध्ययन का प्रस्तावनासम्बन्धी सूत्रपाठ निम्नोक्त है
जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सम्पत्तणं दुहविवागाणं नवमस्त अज्झयणस्स अयमठे परणत्त, दसमस्स गणं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव सम्पत्तेणं दुहविव. गाणं के अट्ठे पराणते ? -' अर्थात् यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःख-विपाक के नवम अध्ययन का यदि भदन्त ! यह (पूर्वोक्त) अथ प्रतिपादन किया है तो भदन्त ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दु.खविपाक के दशम अध्ययन का क्या अर्थ कथन किया है ? ।
अड्ढे० -- यहां के बिन्दु से संसूचित पाठ का विवरण पृष्ठ १२० पर, तथा – परिसा जाव गोयहां पठित जाव-यावत् पद से अभिमत पाठ पृष्ठ ३७५ पर लिखा जा चुका है । तथा –जे? जाव अडमाणे - यहां का जाव-यावत् पद --अन्तेवासी इन्दभूती नाम अरणगारे गोयमसगोत्ते-से ले करच उणाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाई - यहां तक के पदों का तथा - छट्टे-छट्टेणं अणिक्वित्तणं तवो. कम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तते णं से भगवं गोयमे छक्वमणपारणगंसि पढमाए
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