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नवम अध्याय
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
गच्छइ २-आजाती है, अाकर । सिरीए-श्री । देवीर-देवी के । अवाणंसि-'अपान -गुह्यस्थान में । पक्खिवेति-प्रविष्ट कर देती है। तते णं-तदनन्तर । सा-वह । सिरीदेवी- श्रीदेवी। महता २अति महान् । सद्देणं-शब्द से । प्रारसित्ता-आक्रन्दन कर, चिल्ला २ कर । कालधम्मुणा - कालधर्म से । संजुना-संयुक्त हुई-काल कर गई। तते ण-तदनन्तर । तीले-उस । सिरीर देवोए-श्रीदेवी की । दासचेडीओ-दास, दासियां । प्रारसियस-प्रारसितशब्द-आक्रन्दनमय शब्द को अर्थात् राड़ को । सोक्वा-सुन कर । निसम्म-अवधारण कर । जेणेव-जहां पर: सिरीदेवी-श्रीदेवी थी। तेणेव वहां पर । उवागच्छन्ति २ --अाजाती हैं, पाकर । ततो-वहां से । देवदत्तं- देवदत्ता । देविं - देवी को । अवक्कम. माणिं-निकलती - वापिस आती हुई को। पासंति-देखती हैं, और । जेणेव -जिधर । सिरीदेवी-श्री. देवी थी । तेणेव-वहां पर। उवागच्छन्ति २-आती हैं, आकर। सिरिदेवि -श्रीदेवी को। निप्पाणंनिष्प्राण-प्राणरहित । निच्चेट्ठ-निश्चेष्ट - चेष्टारहित । जीवविप्पजढं-जीवनरहित । पासंति २देखती हैं, देख कर । हा हा अहा-हा ! हा ! अहो ! । अकज मिति -बड़ा अनर्थ हुआ, इस प्रकार । का-कह कर । रोयमाणोश्रो २-रुदन, अाक्रन्दन तथा विलाप करती हुई । जेणेव जहां पर । पूसणंदी-पुष्यनन्दी । राया-राजा था। तेणेव - वहां पर । उवागच्छति २ -अाती हैं, अाकर । पूसणंदिरायं-महाराज पुष्यनन्दी के प्रति । एवं- इस प्रकार । वयासी-कहने लगीं । एवं खलु इस प्रकार निश्चय ही । सामी! -हे स्वामिन् ! । सिरोदेवो-श्रीदेवी को । देवदत्तार -देवदत्ता । देवीएदेवी ने । अकाले चेव-अकाल में ही । जीविषाओ-जीवन से । ववरोविया-पृथक कर दिया, मार दिया।
मूलार्थ- तदनन्तर किसी समय मध्यरात्रि में कुटुम्बसम्बन्धी चिन्ताओं से व्यस्त हुई देवदत्ता के हृदय में यह संकल्प उत्पन्न हुआ कि महाराज पुष्यनन्दी निरन्तर श्रीदेवी की सेवा में लगे रहते हैं, तब इस अवक्षेप-विघ्न से मैं महाराज पुष्यनन्दी के साथ उदार मनुष्यसम्बन्धी विषयभोगों का उपभोग नहीं कर सकती, अर्थात उन के श्रीदेवी की भक्ति में निरंतर लगे रहने से मुझे उन के साथ पर्याप्तरूप में भागों के उपभोग का यथेष्ट अवसर प्राप्त नहीं होता। इस लिये मुझे अब यही करना योग्य है कि अग्नि के प्रयोग, शस्त्र अथवा विष के प्रयोग से श्रीदेवी का प्राणांत करके महाराज पुष्यनन्दी के साथ उदार-प्रधान मनुष्यसम्बन्धी विषयभोगों का यथेष्ट उपभोग करू, ऐसा विचार कर वह श्रीदेवी को मारने के लिये किसी अन्तर, छिद्र और विरह की अर्थात् उचित अवसर की प्रतीक्षा में सावधान रहने लगी।
___ तदनन्तर किसी समय श्रीदेवी स्नान किए हुए एकान्त शयनीय स्थान में सुखपूर्वक सोई पड़ी थी । इतने में देवी देवदत्ता ने स्नपित-जिसे स्नान कराया गया हो, एकान्त शयनागार में विश्रब्धनिश्चिन्त हो कर सोई पड़ी श्रीदेवी को देखा और चारों दिशाओं का अवलोकन कर जहा भक्तगृह था वहा
आई, आकर एक लोहे के दंडे को लेकर अग्नि में तपाया, जब वह अग्नि जैसा और केसू के फूल के समान लाल होगया तो उसे संडास से पकड़ कर जहां श्रीदेवी थी वहां आई, उस तपे हुए लोहे के दंडे को श्रीदेवी के गुह्यस्थान में प्रविष्ट कर दिया । उस के प्रक्षेप से बड़े भारी शब्द से आक्रन्दन करती हुई श्रीदेवी काल कर गई।
तदनन्तर उस भयानक चीत्कार शब्द को सुन कर श्रीदेवी की दास दासियें वां दौड़ी हुई श्राइ आते ही उन्हों ने वहां से देवदत्ता को जाते हुए देखा और जब वे श्रीदेवी के पास गई तो उन्हों ने श्रीदेवी को प्राणरहित, चेष्टाशून्य और जीवनरहित पाया । तब मरी हुई श्रीदेवी को देख कर वे एकदम
(१) अपानशब्द का अर्थ कोषों में गुदा लिखा है, परन्तु कहीं २ योनि अर्थ भी पाया जाता है।
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