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श्री विपाक सूत्र
नवम अध्याय
विवाहसंस्कार सम्पन्न हो जाने के बाद । देवदत्तार- देवदत्ता के । अम्मापियो -माता पिता और उन के। मित्त० -मित्र । जाव - यावत् । परियणं च - परिजन को । विउलेणं - विपुल-पर्याप्त । असण०४अशनादिक, तथा । वत्थगंधमल्लालंकारेण य-वस्त्र, गंध, माला और अलंकारादि से । सक्कारेति २सत्कार करता है, सत्कार कर के सम्माणे इ २-सम्मान करता है, करके, उन सब को । पडिविसज्जेतिविसर्जित करता है --विदा करता है ।
__ मूलार्थ--किसी अन्य समय दत्त गाथापति -गृहस्थ शुभ तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र और मुहूर्त में विपुल अशनादिक सामग्री तैयार करा कर मित्र, ज्ञाति, स्वजन और सम्बन्धी आदि को आमंत्रित कर स्नान यावत् दुष्ट म्वप्नादि के फल को विनष्ट करने के लिये मस्तक पर तिलक और अन्य मांगलिक कार्य करके सुखप्रद आसन पर स्थित हो उस विपुल अशनादिक का मित्र, ज्ञाति, स्वजन, सम्बन्धी एवं परिजनों के साथ आस्वादन, विस्वादन आदि करने के अनन्तर, उचित स्थान पर बैठ 'आचान्त, चाक्ष और परमशुचिभूत हो कर मित्र, ज्ञ तिजन आदि का विपुल पुष्प, वस्त्र, गंध, माला और अलंकार से सत्कार करता है, सम्मान करता है। तदनन्तर स्नान करा कर यावत् शारीरिक विभूषा से विभूषित की गई कुमारी देवदत्ता को सहस्रपुरुषवाहिनी अर्थात् जिसे हजार आदमी उठा रहे हैं ऐसी शिविका में बिठा कर अनेक मित्रों, ज्ञातिजनों, निजकजनों, स्वजना, सम्बन्धिजनों और परिजनों से घिरा हुआ सर्व अद्धि यावत् वादित्रादि के शब्दों के साथ राहीतक नगर के मध्य में से होता हुआ दत्त सेठ, जहां पर महागज वैश्रमण का घर और जहां पर महाराज वैश्रमणदत्त विराजमान थे, वहां पर आया, अाकर उस ने महाराज को दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि कर के महाराज की जय हो, विजय हो, इन शब्दों से वधाई दी, वधाई देने के बाद कुमारी देवदत्ता को उनके अर्पण कर दिया, सौंप दिया।
महाराज वैश्रमण दत्त उपनीत-अर्पण की गई कुमारी देवदत्ता को देख कर बड़े प्रसन्न हुए, और विपल अशनादिक को तैयार करा कर मित्रों. ज्ञातिजनों, निजकजनों, सम्बन्धिजनों तथा परिजनों को आमंत्रित कर उन्हें भोजनादि करा तथा उन का वस्त्र, गंध और माला अलंकार आदि से सत्कार करते हैं, सम्मान करते हैं, सम्मान करने के अनन्तर कुमार पुष्यनन्दो और कुमारी देवदत्ता को फलक पर बिठा कर श्वेत ओर पीत अर्थात् चांदा और सुवर्ण के कलशों से उनका अभिषेक - स्नान कराते हैं, तदनन्तर उन्हें सुन्दर वेष भूषा से सुसज्जित कर, अग्निहोम-हवन कराते हैं, हवन के बाद कुमार पुष्यनन्दी को कुमारी देवदत्ता का पाणिग्रहण कराते हैं, तदनन्तर वह वैश्रमणदत्त नरेश कुमार पुष्यनन्दी और देवदत्ता वा सम्पूर्ण ऋद्ध यावत महान् वाद धनि और ऋद्धि समुदाय तथा सम्मानसमुदाय के साथ दोनों का विवाह करवा डालते हैं। तात्पर्य यह है 15 विधिपूर्वक बड़े समारोह के साथ कुमार पुष्यनन्दी और कुमारी देवदत्ता का विवाहसंस्कार सम्पन्न हो जाता है।
____ तदनन्तर देवरत्ता के माता पिता तथा उनके साथ आने वाले अन्य मित्रजनों, ज्ञातिजनों, निजकजनों, स्वजनों, सम्बन्धिजनों और परिजनों का भी विपुल अशनादिक तथा वस्त्र, गन्ध, माला
और अलंकारादि से सत्कार करते हैं, सम्मान करते हैं तथा सत्कार एवं सम्मान करने के बाद उन्हें सम्मानपूर्वक विसर्जित अर्थात विदा करते हैं।
(१) कुल्ला -कुल्ली करने वाले को श्राचान्त कहते हैं । मुंह में लगे हुए भक्त -भोजन के अंश को जिस ने साफ़ कर लिया है, वह चोक्ष कहलाता है, तथा परम शुद्ध (जिस का मुख बिल्कुल साफ़ हो) को परम. शुचिभूत कहा जाता है।
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