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४९२]
श्री विपाक सूत्र -
[नवम अध्याय
एक कम पांच सौ माताओं को आमंत्रित करता है । तब सिंहसेन राजा से आमंत्रित हुई वे एक कम पांच सौ देवियों की एक कम पाँच सौ माताएं सर्व प्रकार के वस्त्रों एवं आभूषणों से सुसज्जित हो, सुप्रतिष्ठ नगर में महाराज सिंहसेन के पास आ जाती हैं । महाराज सिंह सेन उन देवियों की माताओं को निवास के लिए कूटाकारशाला में स्थान दे देता है। तदनन्तर कौटुम्बिक पुरुषों को बुला कर कहता है हे भद्रपुरुषो! तुम लोग विपुल अशनादिक तथा अनेकविध पुष्पों, वस्त्रों, गन्धों-सुगन्धित पदार्थों, मालाओं और अलंकारों को कुटाकारशाला में पहुंचा दो?, कौटुम्विक पुरुष महाराज की आज्ञानुसार सभी सामग्री कूटाकारशाला में पहुंचा देते हैं । तदनन्तर सर्व प्रकार के अलंकारों से विभूषित उन एक कम पांच सौ देवियों को माताओं ने उस विपुल अशनादिक तथा सुरा आदि सामग्री का आस्वादनादि किया- यथारुचि उपभोग किया और नाटक-नर्तक गान्धर्वादि से उपगीयमान-प्रशस्यमान होती हुई सानन्द विचरने लगीं।
तत्पश्चात् अर्द्ध रात्रि के समय अनेक पुरुषों के साथ समपरिवृत-घिरा हुआ महाराज सिंहसेन जहां कुटाकारशाला थी वहां पर आया, श्राकर उसने कुटाकारशाला के सभी द्वार बन्द करा दिये और उस के चारों तरफ आग लगवा दी । तदनन्तर महाराज सिंहमेन के द्वारा आदीपित-जलाई गई, त्राण
और शरण से रहित हुई वे एक कम पांच सौ देवियों की माताएं रुदन, आक्रन्दन और विलाप करती हुई कालधर्म को प्राप्त हो गई। तत्पश्चात् एतत्कर्मा, एतद्विद्य, एतत्प्रधान और एतत्समाचार वह सिंहसेन राजा अत्यधिक पाप कर्मों का उपार्जन करके ३४ सौ वर्ष की परमायु पाल कर कालमास में काल करके छठी नरक में उत्कृष्ट २२ सागरोपम की स्थिति वाले नारकियों में नारकीयरूप से उत्पन्न हुआ।
टीका-सैंकड़ों स्तम्भों से सुशोभित तथा बहुत विशाल · कूटाकारशाला के निर्माण के अनन्तर महाराज सिंहसेन ने श्यामा को छोड शेष ४९९ रानियों की माताओं को सप्रेम और सत्कार के साथ अपने यहां अाने का निमंत्रण भेजा। महाराज सिंहसेन का आमंत्रण प्राप्त कर उन ४९९ देवियों की माताओं ने वहां जाने के लिये राजमहिलाओं के अनुरूप वस्त्राभूषणादि से अपने को सुसज्जित किया और वे सब वहां उपस्थित हुई। महाराज सिंहसेन ने भी उन का यथोचित स्वागत और सम्मान किया, तथा कुटाकारशाला में उनके निवास का यथोचित प्रबन्ध कराया, एवं अपने राजसेवकों को बुला कर अाज्ञा दी कि कुटाकारशाला में चतुर्विध (अशन, पान, खादिम और स्वादिम) आहार तथा विविध प्रकार के पुष्पों, वस्त्रों, गन्धों, मालाओं और अलंकारों को पहुँचा दो। महाराज सिंहसेन की आज्ञानुसार उन राजसेवकों ने सभी खाद्य पदार्थ तथा अन्य वस्तुए प्रचुर मात्रा में वहां पहुँचा दी। तब वे माताएं भी कुटाकारशाला में आए महार्ह भोज्यादि पदार्थों का यथारुचि भोगोपभोग करती हुई तथा अनेक प्रकार के गान्धवा-गायकों तथा नाटकों से मनोरंजन और नटों के द्वारा आत्मश्लाघा का अनुभव करती हुई सानन्द समय यापन करने लगीं।
___मुनि श्री अानन्दसागर जी ने अपने विषाकसूत्रीय हिन्दी अनुवाद में पृष्ठ २८९ पर – “एगूणगाणं पंचएहं देवीसयाणं पगूणगाई पंचाइसयाई आमतेति"- इस पाठ का - एककम पांच सौ देवियों (श्यामा से अतिरिक्त ४९९ रानियों) को तथा उन की एक कम पांच सौ माताओं को आमंत्रण दिया- यह अर्थ किया है, परन्तु यह अर्थ उचित प्रतीत नहीं होता, क्योंकि "देवीसयाणं माइसयाई” यहां पर सम्बन्ध में षष्ठी है। माता पुत्री का जन्यजनकभाव सम्बन्ध स्पष्ट हो है दूसरी बात - यदि देवियों (रानियों) को भी निमंत्रण होता तो जिस तरह सूत्रकार ने "आमंतेति' इस क्रिया का कम 'माइयाइ” यह द्वितीयान्त रक्खा है, उसी प्रकार ' देवीसयाण" यहां षष्ठी न रख कर सूत्रकार द्वितीया विभक्ति का प्रयोग करते, अर्थात् 'देवीसयाण" के स्थान पर "देवीसयाई" इस पाठ का व्यवहार करते । तीसरी बात - महारानी
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