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अष्टम अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित।
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को अभिमत है।
-सुरं च ६-यहां के अंक से-मधुच मेरगं च जाति च सीधुच पसन्नं च--इन पदों का ग्रहण करना चाहिये । इन का अर्थ पृष्ठ १४४ पर लिखा जा चुका है । तथा-आसादेमाणे ४ - तथा -एयकम्मे ४ -- यहां के अंको से अभिमत पाठ क्रमशः पृष्ठ २५० पर और १७९ की टिप्पण में लिखा जा चुका है।
अब सूत्रकार श्रीद महानसिक के अग्रिम जीवन का वर्णन करते हैंमून-तते णं सा समुदात्ता भारिया जायनिद्द या यावि होत्था, जाया जाया दाग्गा विणिघायमावज्जंति, जहा गंगादत्ताए विता। आपुच्छणा । श्रावयाइयं, दोहलो जाव दागं पयाता, जाव जम्हाणं अहं इमे दारए सोरियस्स जक्खस्स उवाइयलद्धए, तम्हा णं हाउ अम्हं दारए सोरियदत्ते णामेण । तते णं से सोरिए दारए पंचधाती० जाव उम्मुक्कबालभावे विएणयपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पचे यावि हात्था । तते ण से समुद्ददत्ते अन्नया कयाइ कालधम्मणा संजुत्ते । तते णं से सोरिए दारए वहूहि मिन० रोयपाणे ३ समददत्तस्स णीहरणं करेति २ नोइयाई पयकिसनाई करेति ।
पार्थ-तते णं-तदनन्तर । सा-वह । समुददत्ता - समुद्रदत्ता । भारिया-भार्या । जायनिया - जातनिद्रुता-मृतवत्सा । यावि होत्था-भो थी, उस के । जाया जाया-उत्पन्न होते ही । दारगा-बालक । विणिवायमावज्जति-विनिघात - विनाश को प्राप्त हो जाते थे । जहाजैसे । गंगादत्तार-गंगादत्ता को । विता-विचार उत्पन्न हुए थे, तद्वत् समुद्रता के भी हुए । आपुच्छणा-पति से पूछना । अोवाइयं-यक्षमंदिर में जाकर मन्नत मानना। दोहलो- दोहद उत्पन्न हुआ। जाव- यावत् अर्थात् उस की पूर्ति को । दारगं-बालक को । पयाता - जन्म दिया। जाव - यावत् । जम्हा णं-जिस कारण । अम्हं -हमको । इमे - यह । दाए-बालक । सोरियस्स-शौरिक । जाखस्स -यक्ष की । उवाइयलद्धए --मन्नत मानने से उपलब्ध हुअा है । तम्हा णं- इसलिये । अम्हं-हमारा । दारए-यह वालक । सोरियदत्त -शोरेकदत्त । णामेणं-नाम से । होउहो । तते णं -तदनन्तर । से-वह । सोरिर-शौरिक । दारए बालक । पंचधाती०-पांच धाथमाताओं से परिगृहोत । जाव-यावत् । उम्मुरबानमावे-बालभाव को त्याग कर । विरा गयपरिणयमेत्त-विज्ञान की परिणत-परिपक्व अवस्था को प्राप्त हुआ। जोवणगमणुप्पत्त यावि-युवावस्था को सम्प्राप्त भी। होत्था-हो गया था। तते णं-तदनन्तर अर्थात् उस के पश्चात् । से-वह । समुद्ददत्त-समुद्रदत्त । अन्नया- अन्य । कयाइ-किसी समय । कालधम्मुणा-कालधर्म से । संनुत्ते-संयुक्त हुअा अर्थात् मृत्यु को प्राप्त हो गया । तते णं – तदनन्तर अर्थात् मृत्युधर्म
प्राप्त होने के अनन्तर। से-वह । सोरिए-शौरिक । दारए-बालक । बहूहिं- अनेक । मित्त-मित्रों, निजकजनों, स्वजनों-सम्बन्धिजनों, और परिजनों के साथ । रोयमाणे ३ -- रुदन, प्रा.
(१) छाया-तत: सा समुद्रदत्ता भार्या जातनिद्रुता चाप्यभवत् । जाता जाता दारका विनिधातमापद्यते। यथा गंगादत्तायाः चिन्ता । आप्रच्छना । उपयाचितम् । दोहदो यावद् दारकं प्रजाता यावद् यस्मादस्माकमयं दारक: शौरिकस्य यक्षस्य उपयाचितलब्धः तस्माद् भवत्वस्माकं दारक: शौरिकदत्तो नाम्ना । तत: स शौरिको दारक: पञ्चधात्री० यावदुन्मुक्तबालभावो विज्ञकपरिणतमात्रो यौवनकमनुप्राप्तश्चाप्यभवत् । ततः स समुद्रदत्तोऽन्यदा कदाचित् कालधर्मेण संयुक्तः । ततः स शौरिको दारको बहभिर्मित्र. रुदन् ३ समुद्रदत्तस्य निस्सरणं करोति २ लौकिकानि मृतकृत्यानि करोति ।
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