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श्री विपाक सूत्र
४४४]
[ अष्टम अध्याय
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भूत की तरह यह जिस सर पर चढ़ा करती है, 'हदफे 'तीरे बला उसको किया करती है। faeमने होit "ख़िरद को यह फ़ना करती है, क्या बताऊं तुम्हें अहबाब यह क्या करती है ?, कि व्यां होगा न मुझ से यह फसाना हर्गिज़ ।
DRINK NOT WINE NOR STRONG DRINK AND EAT NOT ANY UNCLEAN THING. ( JUDGES 13 - 4 ) अर्थात् ईसाइयों के धर्मग्रन्थ इंजील में लिखा है कि शराब मत पित्रो, नाहीं किसी अन्य मादक वस्तु का सेवन करो और नाहीं किसी अपवित्र वस्तु का भक्षण करो । पाश्चात्य लोगों ने भी मदिरासेवन का पूरा २ विरोध किया है। एक पाश्चात्य विद्वान् का कहना है कि - Wine in and wit out - अर्थात् मदिरा के भीतर प्रवेश करते ही बुद्धि बाहिर हो जाती है। इस के अतिरिक्त इस बात पर विचार कर लेना आवश्यक प्रतीत होता है कि शराब पीना स्वभाविक है या अस्वाभाविक ? | यदि शराब पीना स्वाभाविक होता तो सभी प्राणी शराबी होते । शराब न पीने वाला एक भी प्राणी न मिलता । परन्तु ऐसी बात नहीं है । सारांश यह है कि जिस के बिना जीवन निर्वाह न हो सके वही वस्तु स्वाभाविक कहलाती है । पानी के बिना कोई प्राणी जीवित नहीं रह सकता, अतः पानी जीवन के लिये स्वाभाविक है । क्या शराब के सम्बन्ध में यह बात कही जा सकती है ?, नहीं, क्योंकि हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि शराब के बिना आज करोड़ों श्रादमी जोवित रह रहे हैं । अतः यह निर्विवाद सिद्ध हो जाता है कि जिस तरह पानी का पीना मनुष्य के लिए स्वाभाविक होता है, वैसे मदिरापान नहीं होता, अर्थात् मदिरापान अस्वाभाविक है ।
शराब पीने वालों की जो शारीररिक, वाचनिक एवं मानसिक अवस्था होती है, वह सब के सामने ही है । उसकी यहां पुनरावृत्ति करने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती । मदिरापान की जितनी भी निन्दा की जाए उतनी ही कम है । मदिरा के ही कारण अनेक राजाओं तक का खून बहा है । मदिरा ने ही जोधपुर, बीकानेर और कोटा आदि के राजाओं एवं सरदारों के प्राणों का हरण किया है, ऐसा एक चारण - भाट कवि ने अपनी कविता में कहा है । इस कवि ने और भी बहुत से नाम गिनाए हैं, जो शराब के कटु परिणाम का शिकार बने हैं । इस दुष्ट मदिरा न जाने कितने कलेजे सड़ाए हैं, ? न मालूम कितने दैवी प्रकृति वालों को राक्षसी प्रकृति वाले बना डाला है १, कौन जाने इसने कितने बाद घर बर्बाद कर दिए हैं १, इसी की बदौलत असंख्य मनुष्य अपने सुखमय जीवन से हाथ धो कर दुःख के घर बने रहते हैं। जिस घर में शराब पीने का रिवाज है, उस घर की अवस्था देखने पर कलेजा मुंह को श्राता है। उस घर के स्त्रियां और बच्चे सब के सब टुकड़े २ के लिए हाय हाय करते रहते हैं, पर घर का मालिक शरात्र के चंगुल में ऐसा फंस जाता है कि उस का उस ओर तनिक ध्यान भी नहीं जाता । वह तो मात्र मदिरा के नशे में ही मस्त हो कर झूमता रहता है । वह यह नहीं सोचने पाता कि इस के फलस्वरूप मेरे धन का, शक्ति का और मेरे सम्पूर्ण जीवन का सर्वतोमुखी विनाश होता जा रहा है । इस लिये ऐसे निष्टप्रद मदिरापान से सदा विरत रहने में कल्याण एवं सुख है ।
सारांश यह है कि सूत्रकार ने प्रस्तुत में श्रीद रसोइए के मांसाहार तथा मदिरापान के जन्य दुष्कर्मों के फलस्वरूप उस को छठी नरक में उत्पन्न होने के कथानक से विचारशील सुखाभिलाषी पाठकों को अनमोल शिक्षायें देने का अनुग्रह किया है । इस पर से पाठकों का यह
(१) निशाना
(२) तीर का
(३) आफत के
(४) खलियान
(५) अक्ल
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