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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir सप्तम अध्याय हिन्दी भाषा टीका सहित। [३९७ गाई मुद्धगाई पुणो य कोमलकमलोवमेहिं हत्थेहि गरिहऊण उच्छंगनिवेसियाई दिति समुल्लावए सुमहुरे पणो पुणो मंजुलप्पभणिते । अहं णं अधण्णा अपुरणा अकयपुण्णा एत्तो एक्कतरमवि न पत्ता । तं सेयं खलु ममं कल्लं जाव जलंते सागरदत्तं सत्थवाहं आपुच्छित्ता सुबहुपुष्फवत्थगंधमल्लालंकारं गहाय बहहि मित्तणाइणियगसयणसंबंधिपरिजणमहिलाहिं सद्धिं पाडलिसंडात्रो णगराओ पडिणिक्खमित्ता चहिया, जेणेव उम्बग्दत्तस्स जस्खस्स जक्खायतणे तेणेव उवाच्छित्ता, तत्थ उंबरदत्तस्स जक्खस्स महरिहं पुष्फच्चणं करेत्ता जाणुपादपडियाए उचयाइत ए-जति णं अहं देवाणुप्पिया ! दारगं वा दारियं वा पयामी, तो णं अहं तुभं जायं च दायं च भागं च अक्खयणिहिं च अणुवड्ढेस्सामि, त्ति कट्ट प्रोवाइयं उवाइणित्तए । एवं संपेहेति संहिता कल्लं जात जलते जेणेव सागरदत्ते सत्थवाहे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता सागरदत्तं सत्थवाहं एवं वयासी-ए' खलु अहं देवाणप्पिए ! तुम्भेहि सद्धिं जाव न पत्ता, तं इच्छामि णं देवाणुप्पिए ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाता जाव उवाइणित्तए । तते णं से सागरदत्ते गंगादत्तं भारियं एवं क्यासीमम पि णं देवाणुप्पिए ! एस चेव मणोरहे, कहं णं तुमं दारगं वा दारियं वा पयाएज्जासि । गंगादत्तं भारियं एयपट्ट अणुजाणेति ।। पदार्थ-तते णं- तदनन्तर । सा--वह । ग गादत्ता-- गंगादत्ता । भारिया--भार्या । जायणिद्द या-जातनिद्रुता - जिस के बालक जीवित न रहते हो । यावि होत्था-भी थी, उस के । जाता २-उत्पन्न हए २ । दारगा - बालक । विणिवायमावज्जति - विनाश को प्राप्त हो जाते । तते णं-तदनन्तर । तीसे-उस । गगादत्ताए -गंगादत्ता । सत्थवाहीए-सार्थवाही को, जो कि । पुश्वरत्तावरत्तकुडुबजागरियार-मध्यरात्रि के समय कुटुम्बसंबन्धी जागरिका-चिन्तन के कारण । जागरमाणीए - जागती हुई के । अन्नया-अन्यदा । कयाइ-कदाचित् - किसी समय । अयमेयारूवे-यह इस प्रकार का । अज्झथिए ५-आध्यात्मिक- संकल्पविशेष ५ । समुप्पन्ने-उत्पन्न हुा । एवं--इस प्रकार । खलु-निश्चय हो । अहं - मैं । सागरदत्तणं-सागरदत्त । सत्थवाहेणं- सार्थवाह – मुसाफिर व्यापारियों का मुखिया या संघ का नायक, के । सद्धि- साथ । उरालाईउदार-प्रधान । मा गुस्लगाई-मनुष्यसम्बन्धी । भागभोगाई -कामभोगों का । भुजमाणी-- सेवन करती हुई । विहरामि-विहरण कर रही हूं, परन्तु । अहं.- मैने आज तक एक भी । दारगं वा-बालक अथवा । दारियं वा- बालिका को। णो चेव-नहीं। पयामि-जन्म दिया अर्थात मैंने ऐसे बालक या बालिका को जन्म नहीं दिया जो कि जीवित रह सका हो। तं- इस लिये। धरा धन्य हैं। तारो-वे । अम्मयाओ-मातायें तथा। सपराणा श्रोणं-पुण्यशालिनी हैं। तारो-वे । श्रम या प्रो-माताऐ। कयत्था या गां-कृतार्थ हैं । ता या वे। अम्मया रो-मातायें । कयलकवणाओं णंकृतलक्षणा हैं। ताना-वे । अम्मयाओ--मातायें। तासिं -उन । अम्मयाणं-माताओं ने । सलद्ध -प्राप्त कर लिया है। माणुस्सए -मनुष्यसन्वन्धी । जम्मजीवियफले--जन्म और जीवन का फल । जाति-जिन के । नियाल्छिसंभूयाई-अपनी कुक्षि - उदर से उत्पन्न हुई संताने हैं, जो कि । थणदुद्धनुदगाई-स्तनगत दुग्ध में लुब्ध हैं । महुरसमुल्लावगाई-~ For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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