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३७८]
श्री विपाक सूत्र
सप्तम अध्याय
के हाथ पांव की अंगुलिये तथा नाक और कान आदि अंग प्रत्यंग भी गल सड़ चुके थे । सारा शरीर वणों से व्याप्त था, व्रणों में कृमि-कीड़े पड़े हुए थे, उन में से रुधिर और पीब बह रहा था। मक्षिकाश्रों के झुण्ड के झुण्ड उस के चारों ओर चक्र काट रहे थे, वह रुधिर, पूय और कृमियों-कीड़ों का वमन कर रहा था । उस के हाथ में भिक्षापात्र तथा जलपात्र भी था और वह घर २ में भिक्षा के लिये घूम रहा था, तथा वह अत्यन्त कष्टोत्पादक, करुगााजनक एवं दीनतापूर्ण शब्द बोल रहा था ।
इस प्रकार की दशा से युक्त पुरुष को भगवान् गौतम स्वामी ने नगर में प्रवेश करते ही देखा, देख कर वे आगे चले गये और धनिक तथा निर्धन आदि सभी गृहस्थों के घरों से आवश्यक भिक्षा ले कर वे वापिस वनषंड उद्यान में प्रभु महावीर के पास आये और यथाविधि अालोचना कर के प्रभु को भिक्षा दिखला कर उनकी आज्ञा से बिल में प्रवेश करते हुए सर्प की भान्ति उस का ग्रहण किया और पूर्व की भान्ति संयममय जीवन व्यतीत करने लगे। यह प्रस्तुत सूत्रगत वर्णन का संक्षिप्त सार है ।
भगवान गौतम द्वारा देखे हुए उस पुरुष की दयनीय दशा से पूर्वसंचित अशुभ कर्मों का विपाक - फल कितना भयंकर और कितना तीव्र होता है ?, यह समझने के लिये अधिक विचार की आवश्यकता नहीं रहती । इस उदाहरण से उस का भली भान्ति अनुगम हो जाता है । ___"-कच्छुल्लं कोढियं---" इत्यादि पदों की व्याख्या निम्नोक्त है
१-कच्छूमान् - कच्छू-खुजली का नाम है । खुजली रोग से आक्रान्त व्यक्ति कच्छमान् कहलाता है । कच्छू का ही दूसरा नाम कण्डू है । कण्डू के सम्बन्ध में कुछ बिचार पृष्ठ ६३ पर भी किया जा चुका है।
२-कुष्ठिक-कुष्ठ कोट का नाम है । कोढ के रोग वाला व्यक्ति कुष्टिक कहलाता है। कष्ठ रोग का विवेचन पृष्ठ ६३ तथा ६४ पर किया जा चुका है ।
३–दकोदरिक–दकोदर जलोदर रोग का नाम है । उस रोग वाले व्यक्ति को दकोदरिक कहते हैं । जलोदर रोग का अर्थसम्बन्धी ऊहापोह पृष्ठ ६३ पर किया गया है ।
-दाओयरियं-के स्थान पर-दोउयरियं- ऐसा पाठ भी उपलब्ध होता है। इसका अर्थ है-द्वयोदरिकं-द्व उदरे इव उदरं यस्य स तथा तं जलोदररोगयुक्तमित्यर्थ:-अर्थात् उदर - पेट में जल अधिक होने के कारण जिस का उदर दो उदरों के समान प्रतीत होता हो उसे द्वयादरिक कहते हैं । दूसरे शब्दों में द्वयोरिक को जलोदरिक कहा जा सकता है ।
४-भगंदरिक- भगंदर रोगविशेष का नाम है। जिस की व्याख्या पृष्ठ ६० तथा ६१ पर की जा चुकी है । भगंदर रोग वाला व्यक्ति भगंदरिक कहा जाता है ।
५-अर्शस-अर्श बवासीर का नाम है। इस के सम्बन्ध में पृष्ठ ६१ पर अर्थसम्बन्धी ऊहापोह किया जा चुका है । अर्श का रोगी अर्शस कहलाता है ।
६-कासिक - कास के सम्बन्ध में विचार पृष्ठ ५६ तथा ६० पर किया जा चका है। कास रोग वाले व्यक्ति को कासिक कहते हैं ।
__७-श्वासिक-श्वास का अर्थ पृष्ठ ५९ पर लिखा जा चुका है । श्वास वाले रोगी का नाम श्वासिक है।।
८-शोफवान्-शोफ- सूजन के रोग से अाक्रान्त व्यक्ति का नाम शोफवान है । ९--शनमुख-जिस का मुख सूजा हुअा हो उसे शनमुख कहते हैं ।
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