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षष्ठ अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित
[ ३४३
एणं- राज्ययोग्य अभिषेक से । अभिसिचंति-अभिषिक्त करते हैं । तयाणंतरं च णं-और तत्पश्चात् । समजोइभूयं-अमि के समान देदीप्यमान । तत-तप्त । अयोमयं-लोहमय । हारं-हार को । अनोमय-लोहमय । संडासरणं-संडासी से । गहाय - ग्रहण कर के । पिणद्धति-पहनाते हैं । तयाणंतरं च णं-और तदनन्तर । प्रद्वहारं -अहार को। जाब-हावत् । पढें -मस्तक पर बांधने का पट्ट-वस्त्र अथवा मस्तक का भूषणविशेष । मउडं--और मुकुट (एक प्रसिद्ध शिरोभूषण जो प्रायः राजा आदि धारण किया करते हैं-ताज) को पहनाते हैं । यह देख गौतम स्वामी को । चिन्ता--विचार उत्पन्न हुआ । तहेव-तथैव-पूर्ववत् । जाव-यावत् । वागरेति-भगवान् प्रतिपादन करने लगे ।
मूलार्थ-उस काल तथा उस समय में ( मथुरा नगरी के बाहिर भंडीर नामक उद्यान में ) श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे । परिषद् और राजा भगवदर्शनार्थ नगर से निकले यावत् वापिस चले गये ।।
उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के प्रधान शिष्य गौतम स्वामी भिक्षार्थ गमन करते हुए यावत् राजमार्ग में पधारे । वहां उन्हों ने हाथियों, घोड़ों और पुरुषों को तथा उन पुरुषों के मध्यगत यावत् नर नारियों से घिरे हुए एक पुरुष को देखा।
राजपरुष उस पुरुष को चत्वर-जहां बहुत से रास्ते मिलते हों, ऐसे स्थान में अग्नि के समान तपे हुए लोहमय सिंहासन पर बैठा देते हैं, बैठा कर उस को ताम्रपूर्ण त्रपुपूर्ण, सीसकपूर्ण तथा चूर्णक आदि से मिश्रित जल से पूर्ण अथवा कलकल शब्द करते हुए गर्म पानी से परिपूर्ण और क्षारयुक्त तैल से पूर्ण, अग्नि के समान तपे हुए लोहकलशोंलोहघटों के द्वारा महान राज्याभिषेक से अभिषिक्त करते हैं ।
तदनन्तर उसे लोहमय संहास-सण्डासी से पकड़ कर, अग्नि के समान तपे हुए अयोमय हार-अठारह लड़ियों वाले हार को, अर्द्धहार-नौ लड़ी वाले हार को तथा मस्तक के पट्टवस्त्र अथवा भूषणविशेष और मुकुट को पहनाते हैं । यह देख गौतम स्वामी को पूर्ववत् चिन्ता-विचार उत्पन्न हुआ, यावत् गौतम स्वामी उस पुरुष के पूर्वजन्मसम्बन्धी वृत्तान्त को भगवान से पूछते हैं, तदनन्तर भगवान उस के उत्तर में इस प्रकार प्रतिपादन करते हैं।
____टीका-प्रस्तुत सूत्र में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पधारने से लेकर गौतम स्वामी के नगरी में जाने और वहां के राजमार्ग में हस्ती आदि तथा स्त्री तुरुषों से घिरे हुए परुष को देखने आदि के विषय में सम्पूर्ण वर्णन प्रथम की भान्ति जान लेने के लिये सूत्रकार ने प्रारम्भ में कुछ पदों का उल्लेख कर के यत्र तत्र जाव -यावत् शब्दों का उल्लेख भी कर दिया है।
मथुरा नगरी के राजमार्ग में गौतम स्वामी ने जिस पुरुष को देखा. उस के विषय में प्रथम के अध्ययनों में वर्णित किये गये पुरुषों की अपेक्षा जो विशेष देखा वह निम्नोक्त है
उसे श्रीदाम नरेश के अनुचर एक चत्वर में ले जाकर अग्नि के समान लालवर्ण के तपे हुए एक लोहे के सिंहासन पर बैठा देते हैं और अग्नि के समान तपे हुए लोहे के कलशों में पिघला हुआ तांबा, सीसा-सिक्का और चूर्णादि मिश्रित संतप्त जल एवं संतप्त क्षारयुक्त तेल आदि को भर कर उन से उस पुरुष का अभिषेक करते हैं अर्थात् उस पर गिराते हैं. तथा अमि के समान तपे हुए हार अर्द्धहार तथा मस्तकपट्ट एवं मुकुट पहनाते हैं ।।
__ उस की इस दशा को देख कर गौतम स्वामी का हृदय पसीज उठा तथा उस की दशा का ऊहापोह करते हुए भगवान् गौतम वहां से चल कर भगवान् के पास आए और आकर
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