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३३४]
श्री विपाक सूत्र
[पश्चम अध्याय
मूल-' वहस्सतिदत्ते णं भंते ! पुरोहिते इओ कालगते समाणे कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववन्जिहिति?
पदार्थ-भते! -हे भदन्त !, अर्थात् हे भगवन् ! । वहस्सतिदत्त णं- वृहस्पतिदत्त । परोहिते -पुरोहित । इओ - यहां से । कालगते-काल को प्राप्त । समाणे-हुा । कहिं-कहां । गच्छिहिति ?-जायेगा ? । कहिं -कहां पर । उववन्जिहिति १-उत्पन्न होगा ? ।
मूलार्थ-हे भदन्त ! वृहस्पतिदत्त पुरोहित यहां से काल करके कहां जावेगा ? और कहां पर उत्पन्न होगा ? ।
टीका-गौतम स्वामी की " - वृहस्पतिदत्त पुरोहित पूर्व जन्म में कौन था और उसने ऐसा कौन सा घोर कम किया था, जिस का फल उसे इस जन्म में इस प्रकार मिल रहा है ? -" इस जिज्ञासा को तो भगवान् ने पूर्ण कर दिया. परन्तु जो व्यक्ति पूर्वोपार्जित अशभ कर्मों के फलस्वरूप इस प्रकार की असह्य वेदना का अनुभव करता हुअा मृत्यु को प्राप्त होगा । उस का अागामी जन्म में क्या बनेगा अर्थात् वह आगे को कहां और किस रूप को प्राप्त करेगा ? इत्यादि बातों के जानने की इच्छा का उत्पन्न होना भी अस्वाभाविक नहीं है, प्रत्युत इसे जानने की विशेष उत्कण्ठा हो हो जाती है । इसी कारण से गौतम स्वामी ने वृहस्पतिदत्त के आगामी *वों के विषय में भगवान् से पूछने का प्रस्ताव किया है । इस के उत्तर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने जो कुछ फरमाया अब सूत्रकार उस का वर्णन करते है
मल२.-गोतमा ! वहस्सतिदत्त णं पुरोहिते चउसद्धिं वासाई परपाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे मूलभिएणे कते समाणे कालमासे कालं किंचा इमीसे रयणप्यभाए. ससारो तहेव जाव पढवोए । तता हथिणाउरे णगरे मियत्ताए पच्चायाइस्सति । से णं तत्थ वाउरिएहिं वहिते समाणे तत्थेव हथिणाउरे णगरे सेट्टिकुलंसिं पुत्तत्ताए। बोहिं० सोहम्मे० महाविदेहे० सिज्झिहिति ५ । णिक्खेवो।
॥ पञ्चमं अज्झयणं समत्तं ॥ पदार्थ - गोतमा ! – हे गौतम ! । वहस्सतिदत्त-वृहस्पतिदत्त । पुरोहिते-पुरोहित । णं-वाक्यालकारार्थक है । चउसडिं-चौसठ -६४ । वासाई-वर्षों की । परमाउं-परमायु । पालइत्ता-पाल कर-भोगकर । अज्जेव-आज ही । तिभागावसेस-त्रिभागावशेष अर्थात् जिस में तीसरा भाग शेष हो, ऐसे । दिवसे-दिन में । सूलभिरणे -सूली से भेदन । कते समाणेकिया हुआ । कालमासे - कालावसर में । कालं किच्चा-काल करके। इमोसे-इस । रयणप्पभाए
(१) छाया वहस्पतिदत्तो भदन्त ! पुरोहित. इतः कालगतः कुत्र गमिष्यति ? कुत्रोपत्पस्यते ?
(२) छाया-गौतम ! वहस्पतिदत्तः पुरोहितः चतुःषष्टिं वर्षाणि परमायुः पालयित्वा अद्य व त्रिभागावशेषे दिवसे शूलभिन्नः कृतः सन् कालमासे कालं कृत्वा अस्यां रत्नप्रभायां संसारस्तथैव यावत् पृथिव्याम्, ततो हस्तिनापुरे नगरे मृगतया प्रत्यायास्यति । स तत्र वागुरिकैः वधितः सन् तत्र व हस्तिनापुरे नगरे श्रेष्ठिकुले पुत्रतया० बोधि० सौधर्मे० महाविदेहे० सेत्यति ५ । निक्षेपः ।
॥ पञ्चमध्ययनं समाप्तम् ॥
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