SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 379
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चतुर्थ अध्याय] हिन्दी भाषा टीका सहित । [२९१ ____टीका-छगलपुर नगर में भिक्षार्थ गये हुए गौतम स्वामी ने राजमार्ग में जिस दृश्य का अवलोकन किया था उस के सम्बन्ध में पूछने पर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी की जिज्ञासानुसार दृष्ट व्यक्ति के पूर्वभव का वर्णन कह सुनाया । उस वर्णन में छगिणक नामक छागलिक की सावद्य जीवनचर्या का जो स्वरूप दिखलाया गया है, उस पर से उसको अधार्मिक. अधर्माभिरुचि, अधर्मानुगामी और अधर्माचारी कहना सर्वथा उपयुक्त ही है । छार्गालक-पद के दो अर्थ किये जाते हैं, जैसे कि-(१) छागों के द्वारा आजीविका चलाने वाला, अर्थात् बकरों को बेच कर अपना जीवन-निर्वाह करने वाला (२) बकरों का वध करने वाला-कसाई अर्थात् बकरों को मार कर या बकरों को मार उनके मांस को बेच कर अपना जीवन चलाने वाला । परन्तु सूत्रकार को प्रस्तुत प्रकरण में छागलिक का अर्थ कसाई अभिमत है। - आत्मा का उपभोग - स्थान शरीर है, शरीर तभी रहता हैं जब कि शरीर की रक्षा के साधन पूरे २ उपस्थित हों । शरीर को समय पर भोजन भी दिया जाये ओर पानी भी दिया जाये तथा अन्य उपयोगी सामग्री भी दी जाये. तब कहीं शरीर सुरक्षित रह सकता है । इस के विपरीत यदि शरीर की सारसंभाल न की जाय तो वह-शरीर ठीक २ काम नहीं दे सकता । शरीर मनुष्य का हो या पशु का हो, उस के ठीक रहते ही उस में आत्मा का निवास संभव हो सकता है, अन्यथा नहीं । छरिणक इन बातों को खूब समझने वाला था, इस लिये उसने बाड़े में बन्द किये जाने वाले अजादि पशुत्रों की रक्षा का पूरा २ प्रबन्ध कर रखा था । उन पशुओं के खाने और पीने आदि की व्यवस्था के लिये उसने अनेकों नौकर रख छोड़े थे। वे उन अजादि पशुओं को समय पर चारा श्रादि देते और पानी पिलाते तथा शीतादि से सुरक्षित रखने का भी पूरा २ प्रबन्ध करते । संरक्षण और संगोपन इन दोनों पदों में पालन पोषण से सम्बन्ध रखने वाली सारी कियात्रों का समावेश हो जाता । . सारांश यह है कि छगिणक छागलिक के वाड़े में अज, भेड़, गवय, वृषभ, शशक, मृगशिशु या मृगविशेष शूकर' सिंह, हरिण, मयूर ओर महिष इन जातियों के सैंकड़ों तथा हजारों पशु बन्धे पा बन्द किये रहते थे, और इन की पूरी २ देख रेख की जाती थी, जिस के लिये उसने अनेक नौकर रख छोड़े थे ।। इस के अतिरिक्त उस पशु और मांसविक्रय संबन्धी कारोबार को चलाने के लिये उसने जो नौकर रक्खे हुए थे, उन्हें चार भागों में विभक्त किया जा सकता है, जैसे कि (१) वे नौकर जो केवल पशुओं का पालन पोषण करते अर्थात् उन को बाहिर ले जाना. बाहों में बन्द करना, घास चारा आदि देना और उन की पूरी २ देखरेख करना । (२) वे नौकर जो अपने घरों में अजादि पशुओं को रखते थे तथा अवश्यकतानुसार छरिणक को देते थे । (३) वे नौकर जो मांस के विक्रयार्थ अजादि पशुओं का वध करके उनके मांस को खण्डश: (टुकड़े २) कर के छरिणक के सुपुर्द कर देते थे । (४) वे अनुचर जो मांस को लेकर नाना प्रकार से तल कर, भून कर और शूल द्वारा पका कर बेचते । तथा छरिणक छागलिक केवल मांसविक्रता ही नहीं या आपतु वह स्वयं भी उसे भक्षण किया करता था, वह भी नाना प्रकार की मदिरात्रों के साथ | इस प्रकार मांसविक्रय और मांसभक्षण के द्वारा उसने जिन पापकर्मों का उपार्जन किया, उन के फल स्वरूप ही वह चौथी नरक For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy