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श्री विपाक सूत्र -
२७२]
एवं जहा पढमे, जाव अंतं काहिति निक्खेवो ।
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॥ ततियं अज्झयणं समत्तं ॥
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पदार्थ - भंते! - हे भगवन् ! । श्रभग्गसेणे - श्रभग्नसेन । चोरसेणावती - चोरसेनापति । कालमासे - कालमास में मृत्यु के समय । कालं किव्वा - काल करके । कहिं-कहां । छ ? - जायेगा ? । कहिं - कहां पर । उववज्जिहिर १ - उत्पन्न होगा ? । गोतमा ! - हे गौतम! | भाणे - अभग्नसेन । चोरसे० - चोरसेनापति । सतातीसं - सैंतीस ३७ । वासाई -वर्षा की । परमाउयं - परमायु । पालइत्ता - पाल कर भोग कर । अज्जेव आज ही । तिभागावलेलेत्रिभागावशेष अर्थात् जिस का तीसरा भाग बाकी हो ऐसे । दिवसे - दिन में । सूलभिन्नेसूली से भिन्न । कते समाणे – किया हुआ । कालगते - काल-मृत्यु को प्राप्त हुआ । इमीसेइस । रयणप्पभाए – रत्नप्रभा नामक | पुढवीर. - नरक में । उक्कोसे० – जिन की उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है, ऐसे । नेरइएसु- नारकियों में । उववज्जिहि - उत्पन्न होगा । ततोवहां से नरक से । श्रणंतरं व्यवधान रहित । उव्वहिता निकल कर । से गं - वह । एवंइसी प्रकार | संसारो - संसारभ्रमण करता हुआ I जहा - - जैसे । पढमे - प्रथम अध्ययनगत मृगापुत्र का वर्णन किया है। जाव- यावत् । पुढवी५० - पृथ्वीकाया में लाखों वार उत्पन्न होगा । ततोवहां से । उव्वहित्ता- निकल कर । वाणारसीए बनारस नामक । णगरीए नगर में I सूयरत्ताण -- शुकर रूप में । पच्चायाहिति- - उत्पन्न होगा । तत्थ - वहां पर । से णं - वह । सोयरिप-िशकर का शिकार करने वालों के द्वारा । जीवियाउ - जीवन से । ववरोविए समाणे - रहित किया हुआ । तत्थेव – उसी । वाणारसीर - बनारस नामक | गरीब - नगरी में । सेकुलसि - श्रेष्ठ - कुल में । पुत्तताए - पुत्र रूप से । पच्चायाहिति - उत्पन्न होगा | तत्थ - वहां पर । से णं - वह । उम्मुकबालभावे - बालभाव - बाल्यावस्था को त्याग कर । जहा - जिस प्रकार । पढमे - - प्रथम अध्ययन में प्रतिपादन किया गया । एवं उसी प्रकार यावत् । तं - जन्म मरण का अन्त । काहि — करेगा अर्थात् जन्म मरण से रहित हो जावेगा । त्तिइति शब्द समाप्त्यर्थक है । निकखेत्रो - निक्षेत्र अर्थात् उपसंहार पूर्ववत् जान लेना चाहिये । ततियं - तृतीय । श्रज्झयणं - अध्ययन । समत्तं - समाप्त हुआ ।
1 जाव -
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[ तीसरा अध्याय
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मूलार्थ - भगवन् ! अभग्नसेन चोरसेनापति कालावसर में काल करके कह जाएगा तथा कहां पर उत्पन्न होगा ?
गौतम ! अभग्नसेन चोरसेनापति ३७ वर्ष की परम आयु को भोग कर आज ही त्रिभागावशेष दिन में सूली पर चढ़ाये जाने से काल करके रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में नारकी रूप से - जिसकी उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम को है, उत्पन्न होगा । तदनन्तर प्रथम नरक से निकले हुए का शेष संसारभ्रमण प्रथम अध्ययन में प्रतिपादित मृगापुत्र के संसार - भ्रमण की तरह समझ लेना, यावत् पृथ्वीकाया लाखों बार उत्पन्न होगा ।
वहां से निकल कर बनारस नगरी में
शूकर के रूप में उत्पन्न होगा, वहां पर शौकरिकोंशूकर के शिकारियों द्वारा आहत किया हुआ फिर उसी बनारस नगरी के श्रेष्ठकुल में पुत्र रूप से उत्पन्न होगा । वहा बालभाव को त्याग कर कर युवावस्था को प्रत होता हुआ, यावत् निर्वाणपद को प्राप्त करेगा - जन्म और मरण का अन्त करेगा । निक्षेप - उपसंहार की कल्पना पूर्व की भांति कर लेनी चाहिये ।
॥ तृतीय अध्ययन समाप्त ॥