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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तीसरा अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । [२६१ आप के लिये इस उत्सव विशेष के उपलक्ष्य अशनादिक सामग्री यहीं पर उपस्थित की जाय या आप स्वयं ही पधारने का कष्ट उठायेंगे । तदनन्तर वे लोग महाबल नरेश के इस आदेश को लेकर चोरपल्ली के सेनापति प्रभग्न सेन के पास पहुंचे और उन्होंने विनीत शब्दों में राजा की ओर से दिये गये सन्देश को कह सुनाया । अभग्नसेन ने उन का यथोचित सत्कार किया और पुरिमताल नगर में कूटकारशाला के निमित्त आरम्भ किये गये महोत्सव में स्वयं वहां उपस्थित हो कर सम्मिलित होने का वचन दे कर उन्हें वापिस लौटा दिया । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पाठक यह तो समझते ही हैं कि महाबल नरेश का चोरपल्ली के सेनापति भग्नसेन को पुरिमताल में बुलाने का क्या प्रयोजन है ? और कौन सी नीति उस में काम कर रही है ? तथा उस में विश्वासघात जैसे निकृष्टतम व्यवहार का कितना हाथ है १ बड़े से बड़ा योद्धा और वीरपुरुष भी विश्वास में श्राकर नितान्त कायरों (बुज़दिलों) के हाथ से मात खा जाता है । जिस नीति का अनुसरण महाबल नरेश ने किया है वह नीतिशास्त्र की दृष्टि से भले ही आचरणीय हो परन्तु वह प्रशंसनीय तो नहीं कही जा सकती और धर्मशास्त्र की दृष्टि से तो उस की जितनी भी भर्त्सना की जाये, उतनी ही कम है । सूत्रगत " - महं महतिमहा लियं" इत्यादि पदों की व्याख्या प्रकृत सूत्र के व्याख्याकार श्री अभयदेव सूरि के शब्दों में- "महं महतिमहालियं कूडागारसालं ति- महतीं प्रशस्तां, महती चासौ अतिमहालिका च गुर्वी महातीमहालिका ताम् अत्यन्तगुरुकामित्यर्थः । " कूडागारसालं ति कूटस्येव पर्वतशिखरस्येवाकारो यस्याः सा तथा, स चासौ शाला चेति समासः तम् । इन पदों की व्याख्या निम्नोक्त है - महती का अर्थ है- प्रशस्त - सुन्दर । महातिमहालिका शब्द अत्यधिक विशाल का परिचायक है । कूट पर्वत के शिखर - चोटी का नाम है । कूट के समान जिस का श्राकार - बनावट हो उसे कूटाकारशाला कहते हैं । कोषकार महतिमहालियं पद का संस्कृत रूप ' - महातिमहतीं ऐसा --' भी बतलाते है । - " उस्तुक जाव दसरतं - यहां पठित जाव यावत पद से “उवकरं श्रभडप्पवेसं, दंडिमकुदंडिमं धरिमं, अधारणिज्जं, अणुद्धूयमुयंगं, अमिलायमल्लदामं, गणिकावर नाडइज्जकलियं, अरोगतालाचराणुचरियं, पमुइयपक्कीलियाभिरामं, जहारिहं- इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है । उच्छुल्क आदि पदों की व्याख्या निम्नोक्त है - (१) उच्छुल्क - जिस उत्सव में आई हुई किसी भी वस्तु पर राजकीय शुल्क - महसूल नहीं लिया जाता उसे उच्छुल्क कहते हैं । (२) उत्कर - जिस उत्सव में दुकानों के लिये ली गई ज़मीन का कर - भाड़ा तथा क्रयविक्रय के लिये लाये गये गाय आदि पशुओं का कर - महसूल न लिया जाए, उसे उत्कर कहते हैं । (३) भटप्रवेश जिस उत्सव में राजपुरुष किसी के नाम प्रवेश है। तात्पर्य यह है कि उस उत्सव में किसी नहीं ली जा सकती । (४) द रिडम कुदरिडम राज्य की व्यवस्था को बनाए रखने के लिये सजा दी जाती है उसे दण्ड कहते हैं और न्यूनाधिक कमती बढ़ती सज़ा को - For Private And Personal घर में प्रवेश नहीं कर सकते. उस का राजपुरुष द्वारा किसी घर की तलाशी अपराध के अनुसार जो कुदंड कहा जाता है ।
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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