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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तीसरा अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । तदनन्तर क्या हुआ ? अब सूत्रकार उस का वर्णन करते हैं - मूल-' तते णं तस्स अभग्ग० चोरसेणावइस्स चारपुरिसा इमीसे कहाए लट्ठा समाणा जेणेव सालाडवी चोरपल्ली जेणेव अभग्गसेणे चोरसेणावई तेणेव उवागच्छंति २ करयल० जाव एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नगरे महब्बलेणं रएणा महया भड़ चड़गरेणं दंडे आणत्ते-गच्छह णं तुमे देवाणु० ! सालाडवि चोरपल्लिं विलुपाहि २ ता अभग्गसेणं चोरसेणावतिं जीवग्गाहं गेण्हाहि २ ता ममं उवणेहि । तते णं से दंडे महया भड़चड़गरेणं जेणेव सालाडवो चोरपल्ली तेणेव पहारेत्थ गमणाए । पदार्थ-तते णं-तदनन्तर । तस्स-उस । अभग०-अभग्नसेन । चोरसेणावइस्सचोरसेनापति के । चारपुरिसा-गुप्तचर पुरुष । इमीसे कहाए-इस (सारी) बात से । लट्ठा समाणा-अवगत-परिचित हुए । जेणेव-जहां पर । सालाडवी-शालाटवी नामक । चोरपल्ली-चोरपल्ली थी और । जेणेव-जहां पर । अभग्गसणे- अभग्नसेन ' । चोरसणावईचोरसेनापति था। तेणेव-वहां पर । उवागच्छंति २त्ता-आते है आकर । करयल० जाव-दान जोड़ कर, यावत अर्थात मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि कर के। एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगे । देवाणुप्पिया ! -हे स्वामिन् ! । एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही । पुरिमताले णगरे-पुरिमताल नगर में । महब्बलेणं रराणा-महाबल राजा ने । महया-महान । भड़चड़गरेणं-योद्धाओं के समुदाय के साथ । दंडे-दण्डनायक-कोतवाल को। आणत्ते--आज्ञा दी है कि । देवाणुप्पिया !हे भद्र ! । तुमे-तुम । गच्छह णं-जाओ, जाकर । सालाडविंशालाटवी । चोरपल्लिं-चोरपल्ली को । विलुपाहि२ त्ता-विनष्ट कर दो-लट लो, लूट कर के । अभग्गसेणं-अभग्नसेन । चोरसेणावति-चोरसेनापति को । जोवगाह -जीते जी । गेण्हाहि २ ता-पकड़ लो, पकड़ कर । ममं-मेरे सामने । उवणेहि-उपस्थित करो । तते णं-तदनन्तर । से-उस । दंडे - दण्डनायक ने । महया-महान् । भड़बड़गरेणं -सुभटों के समूह के साथ । जेणव-जहां पर। सालाडवीशालाटवी । चोरपल्ली-चोरपल्ली थी। तेणेव-वहीं पर । पहोरत्थ गमणाए -जाने का निश्चय किया है । मूलार्थ - तदनन्तर अभग्नसेन चारसेनापति के गुप्तपुरुषों को इस सारी बात का पता लगा तो वे शालाटवी चोरपल्ली में जहां पर अभग्नसेन चोरसेनापति था, वहां पर आये और दोनों हाथ जोड़ कर मस्तक पर दस नखों वाली अजलि करके भग्नसेन से इस प्रकार बोले कि हे स्वामिन ! पुरिमताल नगर में महाबल राजा ने महान सभटों के समुदाय के साथ दण्डनायक कोतवाल को बुला कर आज्ञा दी है कि तुम लोग शोघ्र जाओ, जाकर शालाटवी चारपल्ली का विध्वंस कर दो-लूट लो, और उसके सेनापति अभग्नसेन को जोते जो पकड़ लो, और पकड़ कर (१) छाया-ततस्तस्याभमसेनस्य चोरसेनापतेश्वारपुरुषाः अनया कथया लब्धार्थाः सन्तो यत्रैवाभमसेनश्वोरसेनापतिस्तत्रैवोपागच्छन्ति, उपागत्य करतल. यावदेवमवादिषुः - एवं खलु देवानुप्रिय ! पुरिमताले नगरे महाबलेन राजा महता भटवृन्देन दण्डः श्राज्ञप्तः । गच्छ त्वं देवानुप्रिय ! शालाटवीं चोरपल्ली विलुम्प २ अभग्नसेनं चोरसेनापतिं जीवप्राहं गृहाण, गृहीत्वा मह्यमुपनय । ततः स दण्डों महता भटवृदेन यत्र व शालाटवी चोरपल्ली तत्र व प्रादीधरद् गमनाय । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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