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तीसरा अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
[ १९९
कुडंगे यावि होत्था, तते णं से विजए चोरसेणावई पुरिमतालस्स णगरस्स उत्तरपुरथिमिल्लं जणवयं वहहिं गामघातेहि य नगरपातेहि य गोग्गहणेहि य बंदीग्गहणेहि य पंथकोट्ट हि य खत्तखणणेहि य ओवीलेमाणे २ विहम्मेमाणे २ तज्जेमाणे २ तालेमाणे २ नित्थाणे निद्धणे निक्कणे करेमाणे विहरति, महब्बलस्स रगणो अभिक्खणं २ कप्पायं गेण्हति । तस्स णं विजयस्स चोरसेणवहस्स खंदसिरी णामं भारिया होत्था, अहीण । तस्स णं विजयचोरसेणावइस्स पुत्ते खंदसिरीए भारियाए अत्तए अभग्गसेणे नामं दारए होत्था, अहीणपडिपएणपंचिंदियसरीरे विएणायपरिणयमित्ते जोव्वणगमणुपत्ते।
___ पदार्थ-तते णं-तदनन्तर । से-वह । विजए -निजय । चोरसेणावती-चोरसेनापतिचोरों का सेनापति-नेता । वहणं-अनेक । चोराण य - चोरों । पारदारियाण य-परस्त्रीलम्पटों। गंठिभेयगाण य-ग्रन्थिभेदकों-गांठ कतरने वालों । संधिछयगाण य- सन्धिछेदकों-सान्ध लगाने वालों । खंडपट्टाण य-जिन के ऊपर पहरने लायक पूरा वस्त्र भी नहीं, ऐसे जुत्रारी, अन्यायी धूर्त वगैरह । अन्नेसिं च-अन्य । वहूणं-अनेक । छिन्न-छिन्न-जिन के हस्त आदि अवयव काटे गये हों । भिन्न-भिन्न-जिनके नासिका आदि अवयव काटे गये हों। बाहिराहियाणं- बहिष्कृतजो नगर आदि से बाहिर निकाल दिये गये हों, अथवा-जो शिष्ट मण्डली से बहिष्कृत किये गये हों, उन के लिये । कूडंगे-कुटङ्क था, अर्थात् वंशगहन (बांस के वन। के समान गोपक-रक्षा करने वाला था । तते णं - तदनन्तर । से विजए-वह विजय । चोरसेणावई-चोरसेनापति । पुरिमताल -पुरिमताल । नगरम्स-नगर के । उत्तरपुरथिमिल्लं-ईशान कोणगत । जलवयंजनपद-देश को । बहूहिं- अनेक । गामघातेहि य-ग्रामों को नष्ट करने से । नगरघातेहि यनगरों का नाश करने से । गोग्गहणेहि य-गाय आदि पशुओं के अपहरण से-चुराने से । बंदिग्गहणेहि य-कैदियों का अपहरण करने से । पंथकोहि य-पथिकों को लूटने से । खत्तखणणेहि खात (पाड़) लगा कर चोरी करने से । श्रोवीलेमाणे २-पीडित करता हुआ । विहम्मेमाणे २धर्म-भ्रष्ट करना हुआ । तज्जमाणे-तर्जित-तर्जना -युक्त करता हुआ । तालेमाणे २-चाबुक आदि से ताडित करता हुआ । नित्थाणे---- स्थानरहित । निद्धणे-निर्धन ---धनरहित । निक्कणे-निष्कणधान्यादि से रहित करता हुआ तथा । महब्बल्लस्स- महाबल नाम के । रराणो- राजा के । कप्पायंराजदेय कर - महसूल को। अभिकवणं २-बारम्बार । गेएहति-ग्रहण करता था । तस्स णं-उस विजयस्स-विजय नामक । चोरसेणावइस्स-चोरसेनापति की । खंदसिरी- स्कन्दश्री । जाम-नामक । भारिया-भार्या । होत्था-थी। अहीण-जो कि अन्यून एवं निर्दोष पञ्चेन्द्रिय शरीर से युक्त थी । तस्स णं-उस । विजयचोरसेणावइस्स-विजय नामक चोरसेनापति का । पुत्त-पुत्र । खंदसिरीए-स्कन्दश्री । भारियाए-भार्या का । अत्तए-आत्मज । अहीणपडिपुरणपंचिन्दियसरीरे - अन्यून एवं निर्दोष पांच इन्द्रिय वाले शरीर से युक्त । अभग्गसेणे-भग्नसेन । नाम-नाम का · दारर-बालक । होत्था-था, जोकि । विराणायपरिणय मित्त-विज्ञात-विशेष ज्ञान रखने वाला एवं बुद्धि आदि को परिपक्क अवस्था को प्राप्त किये हुए था और । जोवणगमणुपत्त-युवावस्था को प्राप्त किये हुए था अर्थात् बुद्धिमान् अथव युका था ।
मूलाथे-तदनन्तर वह विजय नामक चारसेनापति अनेक चार, पारदारिक- परस्त्री
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