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श्रो विपाक सूत्र
(दूसरा अध्याय
किन्तु मूल्य में अधिक हो, जैसे रत्न, मणि आदि इन्हें सारभाण्ड कहा जाता है, इस के विपरीत जो भार में अधिक एवं मूल्य में अल्प हो जैसे लोहा, पीतल आदि पदार्थ ये असारभाण्ड कहलाते हैं।
अब सूत्रकार उज्झितक सम्बन्धी आगे का का वृत्तान्त लिखते हैंमूल-तते णं णगरगुत्तिया सुभद्द सत्थ. कालगयं जाणित्ता उज्झियगं दारगं सातो गिहातो णिच्छभंति, णिच्छभित्ता तं गिहं अन्नस्स दलयंति । तते णं से उझियते दारए सयातो गिहातो निच्छूढ़े समाणे वाणियग्गामे नगरे सिंघाडग० २जाव पहेसु, जूयखलएसु, वेसियाघरएसु, पाणागारेसु य सुहंसुहेणं विहरइ । तते णं से उज्झितए दारए अणाहट्टिर अनिवारए सच्छदमती सइरप्पयारे " मज्जप्पसंगी चारजूयवेसदारप्पसंगी जाते. यावि होत्था । तते णं से उझियते अन्नया कयाती कामज्झयाए गणियाए सद्धिं संपलग्गे जाते यावि होत्था । कामझयाए गणियाए सद्धिं विउलाई उरालाई माणस्सगाई भोगभोगाई भुजमाणे विहरति ।
पदार्थ-तते णं-तदनन्तर । त गरगुत्तिया-व नगररक्षक-नगर का प्रबन्ध करने वाले सभाह-सुभद्रा । सत्य०-सार्थवाही " को। कालगतं-मृत्यु को प्राप्त हुई । जाणित्ता-जानकर उभियगं-उज्झितक नामक । दारयं-बालक को । सातो-उसके अपने । गिहातो-घर से । शिति -निकाल देते हैं । णिच्छभित्ता-निकाल कर । तं गिहं-उस घर को । अन्नस्स
अन्य को । दलयंति दे देते हैं । तते णं- तदनन्तर । से-वह । उज्झियते-उज्झितक । दारएबालक । सयातो गिहातो-अपने घर से । निच्छुढे समाणे-निकाला हुआ । वांणियग्गामे गरेवाणिजग्राम नगर में । सिंघाडग-त्रिकोणमार्ग आदि । जाव-यावत् । पहस-सामान्य मागों पर । जूयखलएसु-ध तस्थानों-जूएखानों में । वेसियाघर रासु- वेश्यागृहों में । पाणागारेस-मद्य. स्थानों शराब खानों में । सुहंसुहेणं-सुख-पूर्वक। विहरइ-परिभ्रमण कर रहा है। तते गं
छाया-ततस्ते नगरगौप्तिकाः सुभद्रां सार्थवाही कालगतां ज्ञात्वा उज्झितक दारकं स्वस्माद गृहाद् निष्कासयन्ति निष्कास्य तद्गृहमन्यस्मै दापयन्ति । ततः स उज्झितको. दारकः स्वस्माद गृहाद् निष्कासितः सन् वाणिजग्रामे नगरे शृधाठक० यावत् पथेषु य तागारेषु वेश्यागृहेषु पानागारेषु च सुखसुखेन विहरति । ततः स दारकोऽनपघट्टकोऽ'निवारकः स्वच्छन्दमतिः ‘स्वैरप्रचारो मद्यप्रसंगी चोरा तवेश्यादारप्रसंगी जातश्चाप्यभवत् । ततः स उज्झितकोऽन्यदा . कदाचित् कामध्वजया गणिकयाँ सार्द्ध सप्रलग्नो जातश्चाप्यभूत्। कामध्वजया गणिकया साद्ध विपुलानुदारान् मानुष्यकान् भोगभोगान् भुजानो, विहरति ।
(२) जाब-यावत् -पद से-तिग-चउक्क-चचर-महापह- इन पदों का प्रहण समझना । इन पदों की व्याख्या पृष्ठ ६९ पर की जा चुकी है ।
(१) अनिवारकः-नास्ति निवारको, "-मवं कार्षी-रित्येवं निषेधको यस्य स तथाः प्रतिषेधकरहित हुत्यर्थः । स्वछन्दमतिः, स्ववशा स्ववशेन, वा मतिरस्येति, स्वछन्दमतिः । अत एव स्वैरपचार :- स्वैरमनिवारिततया प्रचारो यस्य स तयेति भावः ।
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