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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अध्याय हिन्दी भाषा टीका सहित। कड़ियों ) पर रखे हुए हैं अर्थात् जिस के दोनों हाथों में हथकड़ियां पड़ी हुई हैं। कंठे गुणरत्न मल्लदामजिस के कण्ठ में कण्ठसूत्र-धागे के समान लाल पुष्यों की माला है । चुरागगुडियगत्तं- जिस का शरीर गेरु के चूर्ण से पोता हुआ है। बुराणयं --जो कि भय से त्रास को प्राप्त हो रहा है । वज्झपाणपीयंजिसे प्राण प्रिय हो रहे हैं अर्थात् जो जीवन का इच्छुक है। तिलं तिलं चेर छिज्जमाणं जिस को तिल तिल कर के काटा जा रहा है । काकणीमसाई खावियं-जिसे शरीर के छोटे छोटे मांस के टुकड़े खिलाये जा रहे हैं अथवा जिस के मांस के छोटे २ टुकड़े काक आदि पक्षियों के खाने योग्य हो रहे हैं । पावंपापी-पापात्मा । कक्करसरहिं -- सैंकड़ों पत्थरों से अथवा सैंकड़ों चाबुकों से। हम्ममाणं -- मारा जा रहा है। अणेगनरनारीसंपरिवुडं -- जो अनेक स्त्री पुरुषों से घिरा हुआ है। चञ्चरे चञ्चरे प्रत्येक चत्वर [जहां पर चार से अधिक रास्ते मिलते हैं उसे चत्वर कहते हैं ] में। खंडपडहएणं - फूटे हुए ढोल से। उग्धोसिज्जमाणं उद्घोषित किया जा रहा है। वहां पर । इमं च णं एयारूवं- इस प्रकार की । उग्घोसणं-उद्घोषणा को । सुणेति-सुनते हैं । एवं खलु देवाणु प्पिया ! - इस प्रकार निश्चय ही हे महानुभावो !। उभियगरस दागस्स-उझितक नामक बालक का। कई किसी। राया वा राजा अथवा । रायपुत्त वा- राजपुत्र ने । नो अवरज्झति-अपराध नहीं किया किन्तु । से-उस के । सयाईकम्माई-अपने ही कर्मों का । अवरझति-अपराध-दोष है।। मूलार्थ-वहां-राजमार्ग में उन्हों ने-भगवान् गौतम स्वामी ने अनेक हाथियों को देखा, जो कि युद्ध के लिये उद्यत थे, जिन्हें कवच पहनाए हुए थे और जो शरीररक्षक उपकरणभूल आदि से युक्त थे तथा जिन के उदर-पेट दृढ़ बन्धन से बान्धे हुए थे। जिनके भूले के दोनों ओर बड़े २ घण्टे, लटक रहे थे एवं जो मणियों और रत्नों से जड़े हुए ग्रेवेयक (कण्ठाभूषण) पहने हुए थे तथा जो उत्तरकंचुक नामक तनुत्राण विशेष एवं अन्य कवचादि सामग्री धारण किये हुए थे । जो ध्वजा, पताका तथा १ पंचविध शिरोभूषणों से विभूषित थे । एवं जिन पर आयुध और प्रहरणादि लिये हुए हाथोवान-महावत सवार हो रहे थे अथवा जिन पर आयुध और प्रहरण लदे हुए थे। इसी भांति वहा पर अनेक अश्वों को देखा, जोकि युद्ध के लिये उद्यत तथा जिन्हें कवच पहनाये हुए थे, और जिन्हें शारीरिक उपकरण धारण कराये हुए थे । जिन के शरीर पर भूल पड़ी हुई थी, जिनके मुख में लगाम दिये गये थे और जो क्रोध से अधरो-होठों की चबा रहे थे । एवं चामर तथा स्थासक-आभरण विशेष से जिन का कटिमाग विभूषित हो रहा था और जिन पर बैठे हुए घुड़सवार आयुध और प्रहरणादि से युक्त थे अथवा जिन पर आयुध और प्रहरण लदे हुए थे । . इसी प्रकार वहां पर बहुत से पुरुषों को देखा, जिन्हों ने दृढ़ बन्धनों से बन्धे हुए और लोहमय कसूलकादि से युक्त कवच शरीर पर धारण किये हुए थे। उनकी भुजा में शरासन पट्टिका --- धनुष खेंचते समय हाथ को रक्षा के निमित्त बांधी जाने वाली चमड़े की पट्टी--बंधी हुई थी । गले में आभूषण धारण किये हुए थे । और उनके शरीर पर उत्तम चिन्हपट्टिका-वस्त्र. खंडनिर्मित चिन्ह-निशानीविशेष लगी हुई थी तथा श्रायुध और प्रहरणादि को धारण किये हुए थे। (१) हाथी के शिर के पांच आभषण बतलाए गए हैं जैसे कि-तीन ध्वजाएं और उन के बीच में दो पताकाएं। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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