________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
श्राध्याग
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
१०९
किस पद और किस काम के लिये उपयुक्त एवं अनुकूल है ? –” इत्यादि बातें केवल मनुष्य के शरीर और उसके रहन सहन एवं उसके. बोली चाली, खान पान आदि को देख कर जानी जा सकती हैं।
(१०) नारीलक्षण-कला-इस कला से नारियों की जातियां पहचानी जाती हैं और किस जाति वाली स्त्री का किस गुण वाले पुरुष के साथ सम्बन्ध होना चाहिये ?जिस से उनकी गृहस्थ की गाड़ी सुखपूर्वक जीवन की सड़क पर चल सके । इन समरत बातों का ज्ञान होता है।
(११) गजलक्षण-कला - इस कला से हाथियों की जाति का बोध होता है और अमुक रंग, रूप. श्राकार, प्रकार का हाथी किस के घर में श्रा जाने से वह दरिद्री से धनी या धनी से दरिटी बन जायगा यह भी इसी कला से जाना जाता है ।
(१२) अश्व-लक्षण-कला- इस कला से घोड़ों की परीक्षा करनी सिखाई जाती है, और श्याम पैर या चारों पैर सफेद जिसके हों ऐसे घोड़ों का शुभ या अशुभ होना इस कला से जाना जा सकता है।
(१३) दण्डलक्षण-कला-इस कला से-किस परिमाण की लम्बी तथा मोटी लकड़ी रखनी चाहिये १ राजाओं, मन्त्रियों के हाथों में कितना लम्बा और किस मुटाई का दण्ड होना चाहिये ? दण्ड का उपयोग कहां करना चाहिये ? इत्यादि बातों का ज्ञान हो जाता है । इस के अतिरिक्त सब प्रकार के कायदे कानूनों की शिक्षा का ज्ञान भी इस कला से प्राप्त किया जाता है।
(१४) रत्न--परीक्षाकला- इस कला से-रत्नों की जाति का, उनके मूल्य का. एवं रत्न अमुक पुरुष को अमुक समय धारण करना चाहिये, इत्यादि बातों का ज्ञान हो जाता है ।
(१५) धातुवाद--कला- इस कला से-धातुयों के खरा खोटा होने की पहचान करना सिखाया जाता है । उन का घनत्व और आयतन निकालने की क्रिया का - ज्ञान कराया जाता है । अमुक जमीन और अमुक जलवायु में अमुक २ धातुऐं बहुतायत से बनती रहती हैं और मिलती हैं, इत्यादि अनेकों बातों का ज्ञान इस कला से प्राप्त किया जाता है ।
(१६) मंत्रवाद-कला- इस कला से आठ सिद्धियें और नव निधिये श्रादि कैसे प्राप्त होती हैं ? किस मन्त्र से किस देवता का श्राहबान किया जाता है ? कौन मन्त्र क्या फल देता है ? इत्यादि बातों का ज्ञान प्राप्त होता है ।
(१७) कवित्व-शक्तिकला-इस कला से .. कविता बनानी अाती है तथा उस के स्वरूप का बोध होता है । कवि लोग जो 'गागर में सागर' को बन्द कर देते हैं, यह इसी कला के ज्ञान का प्रभाव है ।
(१८) तर्क:-शास्त्र-कला-इस कला से - मनुष्य जगत के प्रत्येक कारण से उस के कारण का और किसी भी कारण से उस के कार्य को क्रमपूर्वक निकाल सकने का कौशल प्राप्त ' कर लेता है । इस कला से मनुष्य का मस्तिष्क बहुत विकसित हो जाता है ।
(१९) नीति-शास्त्र कला-इस कला से – मनुष्य सद असद् या खरे-खोटे के विवेक का एवं नीतियों का परिचय प्राप्त कर लेता है । नीति शब्द से राजनीति, धर्मनीति, कूटनीति, साधारणनीति और व्यवहारनीति आदि सम्पूर्ण नीतियों का ग्रहणं हो जाता है।
(२०) तत्त्वविचार-धर्मशास्त्र-कला--- इस कला से - धर्म और अधर्म क्या है ? पुण्य पाप में क्या अन्तर है ? आत्मा कहां से आती है ? और अन्त में उसे जाना कहां है १ मोक्षसाधन के लिये मनुष्य को क्या क्या करना चाहिये ? इत्यादि बातों का ज्ञान हो जाता है। .
For Private And Personal