________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
[१०१
शिक्षक - गुरु ने पूरे परिश्रम के साथ उसे हर एक प्रकार की विद्या में निपुण कर दिया । वह पढ़ना लिखना गणित और शकुन आदि ७२ कलाओं में पूरी तरह प्रवीण हो गया इस के उपलक्ष्य में दृढ़पतिज्ञ के माता पिता ने भी उसके शिक्षागुरु को यथोचित पारितोषिक देकर उसे प्रसन करने का यत्न किया । शिक्षासम्पन्न और युवावस्था को प्राप्त हुए हड़प्रतिज्ञ को देखकर उसके माता पिता की तो यही इच्छा थी कि अब उसका किसी योग्य कन्या के साथ विवाह संस्कार करके उसे सांसारिक विषयभोगों के उपभोग करने का यथेच्छ अवसर दिया जाय । परन्तु जन्मान्तरीय संस्कारों से उबुद्ध हुए हड़प्रतिज्ञ को ये सांसारिक विषयभोग रमणीय (जिनके मात्र आरंभ सुखोत्पादक प्रतीत हो) और ग्रात्म बन्धन के कारण अतएव तुच्छ प्रतीत होते थे । उनके विषय भोगों के अचिरस्थायी सौन्दर्य का उस के हृदय पर कोई प्रभाव नहीं था । उस के पुनीत हृदय में वैराग्य की उर्मियें उठ रहीं थीं। संसार के ये तुच्छ विषयभोग संसारीजीवों को अपने जाल में फंसाकर उसकी पीछे से जो दुर्दशा करते हैं उस को वह जन्मान्तरीय संस्कारों तथा लौकिक अनुभवों से भली भांति जानता था, इसलिये उसने विषय भोगों की सर्वथा उपेक्षा करते हुए तथारूप स्थविरों के सहवास में रहकर आत्म कल्याण करने को ही सर्वश्रेष्ठ माना । फलस्वरूप वह उनके पास दीक्षित हो गये, और संयममय जीवन व्यतीत करते हुए, समिति और गुप्तिरूप आठों प्रवचनमाताओं की यथाविधि उपासना में तत्पर हो गये | उन्हीं के आशीर्वाद से, अष्टविध कर्मशत्रुओं पर विजय प्राप्त करके कैवल्यविभूति को उपलब्ध करता हुआ दृढ़ प्रतिज्ञ का आत्मा अपने ध्येय में सफल हुआ । अर्थात् उस ने जन्म और मरण से रहित हो कर सम्पूर्ण दुःखों का अन्त करके स्वस्वरूप को प्राप्त कर लिया । तदनन्तर शरीर त्यागने क बाद वह सिद्धगति - मोक्षपद को प्राप्त हुआ । यह दृढ़ प्रतिज्ञ के निवृत्तिप्रधान सफल जीवन का सक्षिप्त वर्णन है ।
प्रतिज्ञ का जीवन वृत्तान्त ज्ञात है अर्थात् सूत्र में उल्लेख किया गया है, इसलिये उसके उदाहरण से मृगापुत्र के भावी जीवन को संक्षेप में समझा देना ही सूत्रकार को अभिमत प्रतीत होता है। एतदर्थ ही सूत्र में “जहा दढ़पतिराणे" यह उल्लेख किया गया है ।
यहां पर "सिमिहिति - सेत्स्यति" यह पद निम्नलिखित अन्य चार पदों का भी सूचक है । इस तरह ये पांच पद होते हैं, जैसे कि -
(१) सेत्स्यति - सिद्धि प्राप्त करेगा, कृतकृत्य हो जावेगा ।
(२) भोत्स्यते - केवल ज्ञान के द्वारा समस्त ज्ञेय पदार्थों को जानेगा ।
(३) मोक्ष्यति - सम्पूर्ण कर्मों से रहित हो जावेगा ।
(४) परिनिर्वास्यति - सकल कर्मजन्य सन्ताप से रहित हो जावेगा ।
(५) सर्वदुःखानामन्तं करिष्यति अर्थात् सव प्रकार के दुःखों का अन्त करदेगा |
इस प्रकार मृगापुत्र के अतीत अनागत और वर्तमान वृत्तान्त के विषय में गौतमस्वामी के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्रमण भगवान् महावीर ने जो कुछ फरमाया उस का वर्णन करने के बाद आर्य सुधर्मा स्वामी जम्बूस्वामी से कहते हैं कि हे जम्बू ! मोक्षप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने दु खविपाक के दस अध्ययनों में से प्रथम अध्ययन का यह पूर्वोक्त अर्थ प्रतिपादन किया है ।
प्रस्तुत अध्ययन में जो कुछ वर्णन है उसका मूल जम्बू स्वामी का प्रश्न है। श्री जम्बू स्वामी (१) "सेत्स्यति" इत्यादि पदपंचकमिति, तत्र सेत्स्य'त कृतकृत्यो भविष्यति, भोत्स्यते केवलज्ञानेन सकलज्ञेयं ज्ञास्यति, मोदयति सकलकर्मवियुक्तो भविष्यति, परिनिर्वास्यति सकल – कर्म कृतसन्ताप-रहितो भविष्यति, किमुक्तं भवति - सर्वदुखानामन्तं करिष्यतीति वृत्तिकारः ।
For Private And Personal